चित्र गूगल सौजन्य
डॉ.विजयसिंह ठाकुर ,
नहीं होता ,
झोंपड़ी का गिला दुःख
कब समजो गे तुम ?
बुजुर्गों की तड़पती आत्माओं को
आत्मा का भीगा हुआ सच
हर धडकन की जरुरत हैं |
सूखे देहों का भीगा मन
ढूँढना होगा
बदलती बूंदों की तरलता
और मिजाज का अंदाजा कहाँ|
समय के शतरंज में
सबसे मुलायम सच
उखड़ी हुई सांसे
सताई हुई उम्र करें |
घर शीतलता प्रदान करता
न हो छत फिर भी
अपने जीने की रहा ढूंडता हैं
घर कोई कुढा -करकट नहीं होता |
डॉ.विजयसिंह ठाकुर ,
नांदेड
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