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मेरे दर्द पर ना मुस्कुराना
मेरे दर्द पर ना मुस्कुराना
मेरा दर्द रोता हैं ,
अकेले में सुखे
आंसुओं का घूंट पीता हैं |
जब दर्द सुखा घूँट
बन जाता हैं ,
सिने में
कहीं अटक जाता हैं |
नाजुक होगया हैं
मेरा हृदय ,
अपमान ,असफलता
के तीरों से |
शरीर चलता हैं
मानो इस में प्राण ही ना हो ,
बुलंद आवाज की
ज्यूँ कोई जबान खिंच लेता हो |
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