नीँद से बातेँ ...
पहले नीँद से अकसर , होती थी बातेँ ,
अधिकतर नीँद से , होती थी मुलाकातेँ ||1||
पहले मस्ती होती थी , स्कूल आते-जाते ,
दिखती है दिन-रात अब , हाथोँ मेँ किताबेँ ||2||
और एक दिन उस मुलाकात मेँ..........
मैनेँ पूँछा नीँद से , रहती हो तुम कहां ??
ऐसी भी है बात क्या ? आजाया करो यहां ||3||
बोली हस कर तू तो , बी.टेक कर रहा है ना ,
मेरे हां करते ही बोली, अब मुझको तू भूल ही जा ||4||
--- गोपाल कृष्णा “चौहान” |
कविता पुस्तक : “कुछ पृष्ठ मेरी लेखनी से”
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