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बचपन के वे दिन…



                                                                      चित्र सौजन्य गूगल 

बचपन के वे दिन बड़े सुहाने
फिर कभी वे लौट के ना आये
तब तो सिर्फ खिलौने टूटा करते
फुट-फुट रोकर जी को हल्का कर लेते
अब तो दिल टूटा करते
ज़माने की लाज़ से खुलकर रो भी नहीं सकते
मेरे एक आँसू पे जिसके दिल भर आते
वही आखों को समंदर दे गया जाते जाते
ये आँसू है मेरे प्यार की निशानी
जिसको कभी नहीं है बहानी
बचपन के दिन की क़सक नहीं जाती
वो दिन थे ही इतने खास
बीत जाने पर उसकी महक नहीं जाती |











नूतन शर्मा ,मैसूर 

टिप्पणियाँ

  1. बचपन मेरा हो या तुम्हारा ,बस बचपन ही है ,उसकी यादे खट्टी मीठी .हँसना रोना .मम्मी पापा ,परिवार का स्नेह ,यादो के पन्ने है जो हमें कंठस्थ याद है ......आपकी रचना बहित अच्छी है ...

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