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मुझे सफाई पसंद है...

                                                              चित्र सौजन्य गूगल  

            महाराष्ट्र के नांदेड जिले में आदिवासी परिक्षेत्र है किनवट तहसील | सूरज यहाँ ई.स.२००० में एक कॉलेज पर लिव व्याक्न्सी पर पूर्ण कालिक हिंदी अध्यापक के रूप में छह माह के लिए आया था | कॉलेज शहर से दूर था | सूरज शहर के धनराज टॉकीज के पास ही के बिल्डिंग में अपने दोस्त के साथ किराये के रूम में रहता था | उस बिल्डिंग में विभिन्न जाति के लोग किराये पर रहते थे | ऐसा ही एक पड़ोसी हमारे आने जाने के रास्ते पर रहता था  | वह अपने आप को बड़ा बुद्धिमान, समझदार और शुद्ध समझता था | पर वह अपने आप को ऊँचे खानदान का बताता था | वह अपना प्रभाव डालने के लिए महाराजा के पोशाक में खींची हुई पुरानी तस्वीर दिखाता था | वह पढ़ा लिखा था | उसने अंग्रजी में उस समय एम्.ए. किया था | वह एक स्कूल पर प्रिसिपल भी बन गया था | उसके अनुसार वहाँ गंदगी बहुत थी | लोग स्वच्छता पसंद नहीं करते थे | इसीलिए संस्था चालक से उसका झगड़ा हो गया और उसने नौकरी छोड़ दी | तब से वह गाँधी जी के चरखे से सूत कातता था | वह कहता था –
‘’मुझे सफाई पसंद है ,
  इसीलिए मैं अपने हाथों से बने धागे के ही वस्त्र पहनता हूँ |’’
सफाई और स्वच्छता पसंद वह व्यक्ति जितनी भी बार शौचालय जाता उतनी बार नहाता था | यहाँ तक तो ठीक था | पर किसी का स्पर्श होने, किसी की छाया पढने मात्र से भी वह स्नान करता था | वह दलील देता कि ,
’’ दूसरों का स्पर्श होने से कीटाणुओं का संचार होता है
   और व्यक्ति बीमार पड़ जाता हैं |’’  
             उसकी नजरों में हर व्यक्ति अस्वच्छ , अशुद्ध था | सूरज भी उससे कहाँ बचने वाला था | उसने तो सिर्फ किताबों में पढ़ा था | अस्पृश्य | अप्रैल का महिना था | सूर्य ने अपना स्थान ग्रहण कर लिया था | सो उसके तेज के सम्मुख इंसानों का तंदूर बनाना स्वाभाविक ही था | वह उपर के मंजिल पर रहता था | पानी के लिए एक जग उसके लिए काफी था | उसे प्यास लग रही थी | जब वह दुपहर को लौटकर रूम पर आया और पीने के लिए पानी से भरा हुआ जग उठाया , उसने महसूस किया कि पानी उबल रहा है | इतना गर्म पानी वह कैसे पीये | इसीलिए उसने उस पानी को फ़ेंक दिया और उस स्वच्छ आदमी से पानी माँगा |
‘’ सर , क्या मुझे पानी मिल सकता है ?
   मेरा पानी गर्मी से उबल रहा था ,
   पीने लायक नहीं था ,सो फ़ेंक दिया |’’
उसने हाँ में सर हिलाया और पानी ले आया | जैसे ही मैंने ग्लास की और हाथ बढ़ाया | उसने कहा –
‘’ ग्लास मैं. नीचे रखता हूँ |
   हाथ लग जायेगा तो, फिर से स्नान के लिए जाना पड़ेगा |
   मैं अभी-अभी स्नान कर लौटा हूँ |’’
                                                                  डॉ.सुनील जाधव ,नांदेड 

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