चित्र सौजन्य गूगल
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‘’हूप-हूप
,हूप-हूप ..बंदर ..बंदर ..ये बंदर ..वो बन्दर ..कुनाल के छत पर बंदर बैठा है | अरे
,देखो वो बंदर आम के पेड़ पर चढ़ गया | उसने आम तोड़ लिया | वो सब आम खा रहे हैं | अरे,
साई, उधर देख जामुनी के पेड़ पर भी चढ़ गये वो ..| जामुनी खारे वो | यार गन्या मैं भी बंदर होता तो तुझे दिखा –दिखा
कर उस पेड़ के सारे आम खालेता | ‘’
घर के बाहर हो हल्ला मचा हुआ था | गली
के बच्चे जोर-जोर से चिल्हा रहे थे | उछल-कूद कर रहे थे | कुछ बच्चे पेड़ों पर चढ़े
बंदरों को पत्थर मारकर भगाने की कोशिश कर रहे थे | पन्द्रह-बीस बंदरो की टोली ने
हमारे गली पर आक्रमण कर दिया था | वे एक छत से दूसरी छत पर कूद रहे थे | कइयो के
आंगन में लगे विभिन्न फलों पर वे टूट पड़े थे | लोग आश्चर्य चकित थे | अचानक बंदरो
का आक्रमण | इससे पहले कभी बंदर हमारे गली में नही आये थे | और आज अचानक ..| कुछ
लोग इसे हनुमान जी का आगमन मान रहे थे | श्रद्धा से उन्हें नमन किया जा रहा था |
अपने आप को खुश नसीब मान रहे थे कि –
‘’आज शनिवार
बजरंग बली का दिन और उन्होने हमे घर पर ही दर्शन दे दिया |’’
धीरे-धीरे
प्रत्येक पड़ोसी के फल वाले पेड़ से उन्होंने फल खाए | आम, जामुन, अनार, अमरुद,
नारियल आदि | कुछ बंदर फल खाने के बाद छत पर उधम मचा रहे थे | उन बंदरों की टोली में बच्चे ,जवान , मातायें थी | नवजात
बच्चे माँ की छाती से लिपटे हुए थे | बच्चे और जवान बंदर हाथ उपर कर दो पैरों पर
चल रहे थे | तो कुछ छत से लटक रहे थे | इनको देख नवजात शिशु भी मौज करना चाहते थे
| पर माँ उन्हें अपने से अलग नही होने दे रहे थे | एक माँ अपने बच्चे को हाथ में
उठा कर उसका मुख चूम रही थी | उसका लाड़ प्यार कर रही थी | बच्चे आपस में खेल रहे
थे | तो कुछ बंदर नए बनाये जा रहे खाली मकानों में घुस गये थे | दो जवान बंदर
बारी-बारी से एक दूसरे के गले लग रहे थे | मैं समझ नही पाया कि वे नर-मादा है ,या दो
दोस्त ,या प्रेमी जो एकांत का लाभ उठा रहे थे | उनकी हरकते बिलकुल हमारी तरह थी |
शायद वे हमसे कुछ कहना चाहते हो कि –
‘’हम भी इसी
दुनिया में रहते हैं | हमे भी भूक लगती है, हम भी समुदाय में रहते है | हम में भी
संवेदना है | हमने तुम्हारे घर पर आक्रमण नही किया है | पहले यह हमारा ही घर हुआ
करता था | तुमने ही हमारा घर छीन लिया हैं | अब जो जंगल बचा है ..उस को भी आप लोगो
ने नहीं छोड़ा | ‘’
इस साल सुखा
पड़ने से शहर में कई बंदर घुस आये थे |
डॉ.सुनील जाधव,नांदेड
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