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सरबजीत




आज २ मई क्या जिंदा लाश बन चुकी है ,
पड़ोसी की आत्मा क्या मर चुकी है ?
वह अजगर की तरह निगल रहा था,
हमारी सरकार क्या सो चुकी है ?

सिर्फ सरबजीत का तन मर चूका है ,
आत्मा अभी जीवित बाकी है |
सुनायेगा तेरी दरिंदगी को कैसे वीर शरीर ने सहा है ,
अभी तेरी खूनी जबान पर झूठ कितना बाकी है |

भाई सरबजीत के बेटियों की आँखों में आँसू नही,
वह सालो की बहती हुई एकमुश्त पीड़ा हैं |
बहना की आवाज में आक्रोश, क्रोध नही,
भाई के आपार प्रेम से रोम-रोम जुड़ा है |

क्या इस घिनोनी करतूत की सजा मिलेगी,
या यूहीं कबतक सरबजीत की आत्मा जलेगी ?
क्या किसके सिने में भभकती ज्वाला जागेगी ,
या पत्थर के सिने में कोयल मधुर गीत बोलेगी ?


















सुनील जाधव ,नांदेड
    महाराष्ट्र


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