उस दिन कविता
और उसका मजदुर पति अपने तीन लड़कियों के साथ टिन के घर में फर्श रहित जमीन पर सो
रहे थे | रात के लगभग बारह बज रहे होंगे कि अचानक धड़ा-धड़ धड़-धड़ की आवाजे टिनो से
आने लगी थी | गहरी नींद में सोया हुआ परिवार अचानक हडबडाहट के साथ जाग गया था |
कुछ की क्षणों में पानी विभिन्न स्थानों से टपक ने लगा था | सोने का स्थान गिला
होने लगा था | बारिश तेज से तेज रूप धारण कर रही थी | उसके रोद्र रूप के सामने
परिवार के लोगो ने घुटने टेक दिए थे | बारिश का पानी अब घर में घुसने लगा था |
कविता उसका पति और तीनो बच्चे जो बर्तन हाथ में आया,
या हाथों से ही पानी को बाहर फेकने लगे थे | वे पानी जितना फेंकते पानी का स्तर
उतना ही बढ़ता जा रहा था | घर के खाली बर्तन अब घर जो जलाशय बन चूका था, उस पर तैर ने लगे थे | गलती से जो अनाज बचा था, उसमें पानी ने अपना स्थान
बना लिया था | कविता की लड़की ने पानी को इस तरह जलाशय बनते देख पिता से कहा-
’’बापू ये
पानी कब रुकेगा ?
अब हमारा क्या
होगा ?
हम कहाँ सोयेंगे
?
कल हम क्या
खायेंगे ?
सारा अनाज
नष्ट हो गया है ? ‘’
डॉ.सुनील जाधव ,नांदेड
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