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पंकज त्रिवेदी हिंदी साहित्य में योगदान –डॉ.सुनील जाधव ,नांदेड

             
         

११ मार्च, १९६३ में अहिन्दी भाषी क्षेत्र गुजरात राज्य के जिला सुरेंद्रनगर तहसील वढवान के खेराली गाँव में जन्मे पंकज त्रिवेदी जुझारू एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी है | सरल और सीधा स्वभाव किन्तु गलत बातों के लिए प्रखर भी हो जाते है | आपने बी.एड.एवं जर्नलिज्म इन मॉस कम्युनिकेशन की उपाधि प्राप्त की है | साहित्य के क्षेत्र में आप समान रूप से गुजरती तथा हिंदी दोनों भी भाषाओँ में निष्पक्ष रूप से लेखन कार्य कर रहे है | न केवल उनका योगदान हिंदी साहित्य में ही रहा अपितु हिंदी प्रचार प्रसार में अपना विशेष स्थान बनाया है | आज पंकज त्रिवदी सिर्फ एक नाम नहीं रहा बल्कि हिंदी –गुजराती साहित्य तथा हिंदी प्रचार-प्रसार में अहिन्दी भाषी क्षेत्र में मिल का पत्थर साबित हो रहे है | ऐसा कहना गलत न होगा |
            वे साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर लिखने का महत्व पूर्ण कार्य कर रहे है | कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास, निबंध, रेखाचित्र, अनुवाद आदि | अगन पथ , [लघु उपन्यास ], संप्राप्तकथा , ओस के बूंद [लघु कथा ] माछलीघरमा मानवी [ कहानी संग्रह ], आगिया [ रेखाचित्र संग्रह ], दस्तखत [ सुक्तियाँ ], मर्मवेध , झरोखा [ निबंध संग्रह ] आदि उनकी प्रकाशित रचनाएँ हैं |
        आप अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ई पत्रिका ‘’नव्या’’ तथा साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादन कर रहे हैं | नव्या अहिन्दी भाषी क्षेत्र की साहित्यक पहचान बन गई है | आप ने नव्या के माध्यम से न केवल अहिन्दी भाषी क्षेत्र के रचनाकारों को मंच दिया है अपितु सम्पूर्ण हिंदी विश्व के लिए अपने मुक्त किन्तु अनुशासन एवं स्तरीय द्वार खोल दिये है | आप ने नव साहित्यकारों को मात्र प्रोत्साहित ही नहीं किया बल्कि उन्हें अपनी बात रखने का सशक्त मंच प्रदान किया है | अन्य पत्रिकायें नव साहित्यकारों को मंच तो प्रदान करती तो है पर उन्हें बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ती है | क्योंकि पहले से ही वहाँ वरिष्ठ साहित्यकारों ने आपना डेरा जमालिया होता है | इससे नव साहित्यकार हतोत्साहित हो जाता है | वह पनप ने से पहले ही मुर्झा जाता है | वह नया है, उसमे अनुभव की कमी है | शायद इसी कारण उनकी रचनाओं में कई कमिया हो सकती है | पर जबतक उन्हें मौका नहीं मिलेगा तबतक वे अपनी गलतियों को सुधार कर अपने–आप को कैसे उपर उठा पायेंगें | पंकज त्रिवेदी जी ने नव साहित्यकारों को तराशने का काम किया हैं | वे हर अनघड मूर्ति में से एक सुंदर मूर्ति की स्थापना कर रहे है | विश्व साहित्य का हिंदी पाठक इन मूर्तियों को देख दातों तले उँगलियाँ चबाने का काम कर रहा है | कई ऐसी त्वचा है जो ओरों की उज्वल त्वचा को देख शायद सम्पादक की इस अग्नि से झुलस भी रहे है |
         ‘’नव्या ‘’ जैसे –जैसे आगे बढ़ रहा है | वह प्रतेक पथ पर हिंदी की उज्वल हरयाली फैला रहा है | इस सफर में पंकज जी को कई तुफानो का सामना करना पढ़ा | पर उन्होंने इससे हार नहीं मानी | बल्कि इससे वे और भी मजबूत होते गये | उन्होंने दिखा दिया की नव्या अब कोई दूध पीता बालक नहीं रहा | जो किसी भी संकंटो से घबरा जाये | नव्या के सफर में बीच ही में किसी ने अपना अधिकार जताया था | इस समाचार से हिंदी पाठकों में खलबली मच गई थी | इसके बाद नव्या नये रूप में ढल गई | इसका परिणाम यह हुआ की ‘’नव्या ‘’ और भी प्रसिद्ध हो गई | ‘’नव्या ‘’ की दिन ब दिन ख्याति बढ़ने से अब वह अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका बन गई है | नव्या के पाठक और रचनाकार केवल भारत ही नही रहा अपितु विदेशों में भी बढ़ रहे है | वह दिन दूर नहीं होगा जब नव्या विश्व की सर्व श्रेष्ठ पत्रिका बन जायेगी |

             अहिन्दी भाषी क्षेत्र के हिंदी रचनाकारों को हिंदी भाषी क्षेत्र में अपनी पहचान बना पाना इतना आसान नही होता | उन्हें इसके लिए बहुत संघर्ष करना पढता है | या उन्हें स्थान ही नहीं मिलता | या फिर उन्हें तुच्छता की नजरों से देखा जाता है | मानो वे इंसान ही नहीं बल्कि कुछ और ही हो |पर पंकज जी ने अहिन्दी भाषी हिंदी रचनाकारों को एक सम्मान का दर्जा दिलाया है | अब हमे भी ‘’नव्या’’ पर गर्व है |पंकज जी केवल लेखन या सम्पादन तक ही सीमित नहीं रहे है बल्कि उन्होंने नव्या पब्लिकेशन के अंतर्गत कई किताबे छापी है | जो अहिन्दी क्षेत्र में हिंदी प्रचार-प्रसार का बहुत बड़ा माध्यम बन कर उभर रहा है |
                                                           लेखक 
                                                डॉ.सुनील जाधव,नांदेड 

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