दिन भर के कठीन परिश्रम के उपरांत
उसे याद आया अपना घर और परिवार ,
वे बल दे रहे थे उसके पारिश्रमिक तन
को
और भूख से चीखती हुई आतें पेट के
भीतर |
अग्नि के प्रज्वलन से भूखा चूल्हा
तृप्ति की ,
रहा था, साँसों को हर्ष और उल्हास
से भर ,
परिश्रम की एक-एक बूंदों से आया था
खाद
बड़ी बेसब्री से कर रही थी भूखी
आंतें इंतजार
डॉ.सुनील जाधव
नांदेड ,महाराष्ट्र
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