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चंदू आज बड़ा खुश था ...[व्यंग्य]

चित्र गूगल सौजन्य 

                                    गाँव-गाँव, बस्ती-बस्ती,शहर-शहर में आतिश बाजी होने लगी थी | बात आग के तरह फैल गई थी | किसान ,मजदूर, गरीब, भूके, बेरोजगार उत्सव माना रहे थे | आज उनके ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था | आज उन्हें दुनिया की कोई भी शक्ति आनंदोत्स मनाने से नहीं रोक सकती थी | अचानक सभी अमीर होने वाले थे | अब कोई भूका नहीं मरने वाला था | मानो साक्षात् ईश्वर ने अवतार ले लिया था | अब अमीर गरीब भेद भाव खत्म हो गया था | अब दिल्ली में १२ रु ,मुंबई में ५ रु ,और अन्य स्थानों पर २ रु तथा १ रु ,में पेट भर खाना मिलने वाला था | दिल्ली में इसी लिए महंगा था क्योकि वह राजधानी थी | फोरेंनर को इतना सस्ता खाना खिला कर हम अपना स्तर कैसे कम कर सकते थे | तो थोड़ी सी महंगाई जरुरी थी | पर भारत के लोगो के लिए ये सबसे सस्ता था |
      चंदू की दादी तो सरकार को लाख-लाख दुवायें दिये जा रही थी | उसने तो अपनी उँगलियाँ तक माथे पर मोड़ दी थी | ‘दूधो नहाओ पूतो फलों’ का आशीर्वाद तक मासूम सरकार को दे डाला था | वह कह रही थी |
‘’ बेटा, सुना था .. कलयुग के बाद सतयुग आनेवाला है |
 पर इतनी जल्दी आजायेगा पता न था |
बेटा मेरा जन्म सफल हो गया ..सारी जिन्दगी भर पेट खाने के लिए तरस ती रही थी |
कभी–कभी तो भूका भी सोना पड़ा था |
कई बार मुझे तुम्हारे लिए भिक भी मंगनी पड़ी थी |
बेटा पेट की आग बहुत बुरी होती हैं | ...अब मैं पेट भर खाना खाकर चैन से मर सकती हूँ |
तेरे पिता ने भूक से ही दम तोड़ दिया था | वो मेरा इन्तजार कर रहें होंगे |
अब वे यह बात सुनकर बेहद प्रसन्न हो जायेंगें |’’
             चंदू उछल-उछल कर नाच रहा था | और कवि सुनील की कविता को गा रहा था |
सरकार ने महंगाई का गला रेत कर मार दिया,
जमीन में गहरा गढ्ढा बना कर गाड़ दिया ,
अब न भूका मरेगा कोई ,
महंगाई की ड़ोर को काट दिया कोई ......

---------------------------------------समाप्त -------------------------------------------
                                              लेखक - सुनील जाधव ,नांदेड 

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