करोड़ों
के संसार में
इस
भीड़ उपहार में
मेरा
है विस्तार कहाँ
मेरा
क्या अस्तिव यहाँ
सोचती
हूँ वह क्या है
जिसकी
मुझे तलाश है
वह
मंजिल यही कहीं
या
फिर पूरा आकाश है
ध्यान
कर फिर अर्जुन का
भेद
देती हूँ लक्ष्य को
अब
तो मन में है ठाना
बहुत
दूर मुझ को है जाना
इन्सान
जो मेहनत से
छूते
है आसमा
संग
उनके की रहता है
सारा
जहाँ .........
मैं
करती हूँ
मैं
करुँगी
मैंकुछ बनकर ही रहूंगी
मैं प्रण लेती हूँ ...|
विद्या
कदम
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