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किड्स किंगडम स्कूल में कुछ पल [ संस्मरण ]

           
दोस्तों आज नांदेड शहर के किड्स किंगडम स्कूल के बच्चों के साथ कुछ पल बिताने का मौका मिला | मुझे एक साहित्यकार के रूप में बुलाया गया था | बच्चों को कविता पर कुछ मार्गदर्शन करना था | साथ ही अपनी कविताओं को भी सुनना था | मैं स्कूल की ओर सुबह ०९:३० को निकला था | और १०:०० बजे पहुँच गया | स्कूल शहर की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के सानिध्य में था एक गाँव जिसका नाम है ,खुरगाँव के करीब यह स्कूल है | चारों ओर खेतों पेड़ों,फूल-पौधों से घिरा हुआ था | ऐसे वातावरण को देख किसका मन नहीं रमने वाला था | स्कूल के ठीक सामने खेत में एक उख से बना हुआ झोपड़ा था | उसके सामने एक बैलगाड़ी और दो बैल थे | उसे देख गाँव की याद आ गई थी | स्कूल में प्रवेश करने के लिए  दो बड़े गेट बने हुए थे | एक मुख्य गेट था | आवाजाही के लिए | तो दूसरा स्कूल बसों आदि के लिए जहाँ पार्किंग थी | मैं हमारे पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ.अनीता रावत तथा सहपाठी ज्योति मुंगल के साथ दूसरे गेट से स्कूल में प्रवेश किया था | कार पार्किंग  किया , दरवाजा खोल कर हम जैसे ही बाहर उतरे थे ,वैसे ही हमारी पुरानी सहपाठी जो अब उसी स्कूल में हिंदी पढाती है ,मुस्कुराते हुए उनहोंने हमारा स्वागत किया था | स्कूल के आहाते में भान्ति-भांति के फूल ओर पेड़ थे | आकर्षक और लुभावना था | बहन सारिका ने हमे स्कूल के प्रधानाध्यापक सुनील श्रीवास्तव जी से अतिथि कक्ष में हमे मिलवाया था | उनसे मिलकर अच्छा लगा | मिलनसार, हसमुख,कवि हृदय, कुशल प्रशासक आदि बाते पता चली | उनसे विभिन्न विषयों पर चर्चा के साथ स्कूल के विषय पर भी चर्चा हुई | उनकी मुझे एक बात पसंद आयी | उन्होंने बताया था कि वे बच्चों को परीक्षार्थी नहीं बल्कि जीवन जीना सिखाते है | उनके गुणों को पहचान कर प्रोत्साहित किया जाता है | अतिथि कक्ष में कई ट्रोफी रखी हुई थी | जो स्कूल के गौरव को बढ़ावा दे रही थी |मैंने उनसे कहा था ,'' सर इतनी ट्रोफीयां |
''जी हाँ, पर मैं बच्चों से ट्रोफी की आशा नहीं रखता बल्कि उनका सहभागी होना आवश्यक समझता हूँ | ''  कुछ समय बाद जिस कारण से हमे बुलाया गया था | उस कारण हमें बच्चों के एक कक्ष में ले जाया गया था | कक्षा के भीतर प्रवेश करते ही बच्चों ने जोरदार तालियों से हमारा स्वागत किया था | हमारा परिचय करवाने के बाद रावत मैडम ने कहानी पर और मैंने कविता पर अपना वक्तव्य दिया था | बच्चों भी मन लगाकर सुना था | बच्चों को देखकर मुझे मेरे बचपन की याद आ गई थी | कुछ समय के लिय हम भी उनके साथ बच्चे बने हुए थे | बच्चों में बच्चा बनकर आनंद आया | ऐसे लगा कि मैं फिर से बच्चा बन गया हूँ | इसीलिए बड़े बड़े कवियों, साहित्यकारों, वोद्वानों ने ईश्वर से प्रार्थना की कि मुझे फिर से बचपन दे दे | संत ज्ञानेश्वर ने कहा था ,'' बालपन देगा देवा |''
कुल मिलकर आज का दिन अच्छा बिता ...| -


  







डॉ.सुनील जाधव,नांदेड  

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