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कुछ पल ओक्स फोर्ड इंटरनेशनल स्कूल में [ संस्मरण ]

                                     
          दोस्तों आज फिरसे एक स्कूल के बच्चों के साथ समय बिताने का मौका मिला | मुझे और मेरे साथी व्ही.सी.ठाकुर जी को दो दिन पूर्व एक पत्र प्राप्त हुआ था | उस पर लिखा था | आप को वादविवाद प्रतियोगिता हेतु जज के रूप में बुलाया जा रहा है | स्कूल का नाम था  ओक्स फोर्ड इंटरनेशनल स्कूल | यह स्कूल शहर नांदेड के बस स्टैंड से लगभग दस किलो मीटर की दूरी पर होगा | वाड़ी नामक एक छोटे से गाँव के परिसर में ..| यह स्कूल कोंक्रेट के जंगलों से दूर खेत खलियानों में बसा था | स्कूल का भवन भव्य था | ऊपर साफ-साफ और मोटे शब्दों में स्कूल का नाम लिखा था | स्कूल के प्रधानाचार्य श्रीमती वर्धाचार्य जी से उनके कक्ष में मुलाखत हुई | उन्होंने स्कूल के बारे में बताते हुए कहा था ,

’’ हमारे स्कूल के आस-पास खेत-खलियान है | हम बच्चों को खेत फसल आदि के सम्बन्धी जानकारी देते है | स्कूल की पढ़ाई के अलावा सफारी के तौर पर हम उन्हें गाँव की सफारी पर ले जाते है | उन्हें गाँव की संस्कृति, रहन-सहन आदि से अवगत कराते है | यहाँ पढने वाले बच्चे अधिकतर शहर में रहने वाले है | उन्हें इस प्रकार की जानकारी से रूबरू करवाते है |’’
मैंने इस पर उनकी प्रशंसा करते हुए कहा था |
’’ वा मैंडम , क्या बात है | यही सही तरीका है शिक्षा का ..| आज कल के शहर में रहने वाले बच्चों को दूध कहाँ से आता है पता नहीं | उनसे पूछने पर वे इतना ही कहेंगे कि दूधवाला दूध लाता है | या बोतल या पैकेट्स में मिलता है |’’
इस पर उन्होंने एक किस्सा सुनाया ,
’’ कुछ दिन पूर्व ही एक पेरेंट सामने वाले खेत से जुवार की कलगी तोड़ कर ले गये | और मुझे दिखाते हुए कहा था कि इसे मैं अपने बच्चों को दिखाऊंगा | इसके दाने कैसे होते है | कैसे उभरते हैं |...’’  हमने कई विषयों पर चर्चा की थी | चर्चा में हमारे साथी व्ही.सी.ठाकुर जी भी सम्मिलित थे |

कक्षा में वादविवाद आरम्भ होने से पूर्व हमारा स्वागत पौधे और हाथों से बने ग्रीटिंग जो अध्यापक और छात्रों ने मिलकर बनाया था से किया गया था | पौधे को देखकर मेरा मन प्रसन्न हुआ था | क्योंकि मैं कई स्थानों पर वक्ता बनकर गया था | और प्रत्येक स्थानों पर पुष्प माला या पुष्प गुच्छों से स्वागत किया गया था | यह अनोखा उपहार था | पहले ही मैं प्रकृति प्रेमी और प्रकृति को ईश्वर मानने वाला | मैंने मैडम का शुक्रिया अदा करते हुए कहा था |
 ‘’ मैंडम मुझे आपका उपहार पसंद आया | मैं प्रकृति को ईश्वर मानता हूँ | इसे देख कर ऐसा लगा कि साक्षात् ईश्वर मुझसे मिलने आये हैं |’’

यहाँ वादविवाद में सम्मिलित छात्रों ने एक से बढ़कर एक वक्तव्य दिया था | इनकी हिंदी को देखकर कतई नहीं लगता था कि ये छात्र अहिन्दी भाषी हैं | शायद इसके पीछे एन.सी.आर.टी.का पेटर्न और अध्यापक थे |

दोस्तों और कई बाते है बताने के लिए ..पर आज यही रुकता हूँ | 











डॉ.सुनील जाधव ,नांदेड 
                                                                       

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