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मेरे छूने से.... [ लघु कहानी ] डॉ.सुनील जाधव ,नांदेड

‘’ भिन्ड्डी कैसे दी ? ‘’
इस पर जिला नांदेड के गाँधीनगर के चौक में  गाड़े पर सब्जी बेचती हुई बाई ने कहा ,
‘’  आँठ रूपये में पाव दिए साहब ..’’
मैंने कहा ठीक है ,
‘’ एक पाव देना ..’’
और मैंने चून-चूनकर एक पाव भिन्डी ली और दस रूपये का नोट सब्जीवाली बाई के हाथ में टिका दिए |
‘’साहब, दो रूपये का छुट्टा नही है , कोतमीर दू क्या ? अच्छी है |’’  कहते हुए उसने दो रूपये की कोतमीर हाथ में न चाहते हुए थमा दी | मैंने कोतमीर की साईज देखी ..वह छोटे आकार की थी | मैंने जिज्ञासा वश उसके पास रखी हुई कोतमीर की गड्डी में से एक कोतमीर के पौधे को हाथ में लेकर सुंगते हुए कहा ,
‘’ क्या यह गवरानी [ देहाती ] कोतमीर है |’’

क्यों की देहाती कोतमीर की खुशबू उसकी पहचान होती है |  खुशबू लेने के बाद मैंने उसे अपनी जगह पर रखना चाहा पर उसने रोकते हुए कहा ,
‘’ साहब, अब इसे यहाँ मत रखना | इसे फ़ेंक दो |’’
मैने अश्चर्य के साथ कहा ,
‘’क्यों  ?’’
उसने मुझे कहा,
‘’आपने इसे छुकर सुंग लिया है | अब इसे कोई खरीदेगा नही |’’
मैंने कहा ,
‘’मेरे छूने से ...’’
‘’नही साहब, बात वह नही | बात है, आपने उसे सुंगा ...|’’
मैंने इस पर कहा ,
‘’ बाई ,तो का हुआ ? सुंगने और न खरीदने में सम्बन्ध ...मैं समझा नही |’’
‘’सुंगने से अब इसे कोई खरीदेगा नही साहब | अब यह बेकार हो गया है |’’
मैंने उस बेकार कोतमीर को उठाया | फेकने से अच्छा मैंने उसे अपनी थैली में डाला और दिमाग को ज्यादा परेशान न करते हुए आगे बढ़ गया |




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