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मुक्तिपर्व उपन्यास में दोहरी गुलामी से जूझते दलित

      यह आलेख प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ''साहित्य रागिनी '' में छपा है |  पढने के लिए यहाँ लिंक दी गई है    पूरा आलेख पढने के लिए यहाँ चटकारा लगायें 
       दलित साहित्य ही नही बल्कि हिंदी साहित्य में जाना माना नाम है मोहनदास नैमिशराय | ‘मुक्तिपर्व उनका दलितों के गुलामी, विद्रोह, शिक्षा एवं संघर्ष तथा आत्मविश्वास को अभिव्यक्त करनेवाला उपन्यास हैं | उपन्यास में अन्य समस्याओं के साथ दोहरी गुलामी से जूझते दलित समाज का जीवित शब्दों के माध्यम से चित्रांकन किया गया है दलित’ जिसका अर्थ होता  है ,’दबा हुआ’, ‘कुचला हुआ ‘, प्रत्येक क्षेत्र में जिसका शोषण किया गया  है ,पराजित हुआ है | जिनके  नसीब में हजारों सालों  से निराशा, दुःख, अपमानउपेक्षाघृणा ही लिखी  थी |  उन्हें सवर्णों, जमीदारों, नवाबों, काश्तकारों के विरोध में बोलने का अधिकार था और न उन्हें पढने का अधिकार था | था तो उनके लिए बस गुलामी,गुलामी और गुलामी |

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