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विद्रोह-कर्मकाण्ड-दलित विमर्श की कहानी है, विवेक मिश्र की कहानी '' ‘ऐ गंगा तुम बहती हो क्यूँ ?’


यह आलेख प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय हिंदी साहित्यिक पत्रिका''सृजनगाथा'' में छपा है | इसे पढने के लिए परिच्छेद के अंत में लिंक दी गई है | पढ़कर कृपया प्रतिक्रिया अवश्य दें |
आज मानवों के संवेदनाओं की लाशों पर बैंठे ऊँचे वर्ग के धर्म - जाति के ठेकेदार अपने ही प्रगतिशील विचारों वाले कलेजे के टूकडों को काटकर फेंकने से नहीं हिचकिचाते। जो प्रगतिशील विचारों को लेकर समाज को बदलने की कोशिश करता है, समाज ही उससे बदला लेता है, उसे बहिष्कृत करक के, रिश्ते - नाते रक्त के संबंधो को तोड के, जार - जार रोने के लिए, अपनों से जुदाई का गम सहने के लिए। प्रगतिशील विचारों के युवा साहित्यकार विवके मिश्र जी की कहानियॉं मानव संवेदना के सूक्ष्म धरातल पर लिखी गई प्रगतिशील कहानियाँ हैं। 15 अगस्त, 1970 में उत्तर प्रदेश के झॉंसी में जन्में विवेकजी कवि, कहानीकार, अनुवादक, निवेदक, आलोचक - समीक्षक, पटकथा लेखक बहुआयामी रचनाकार हैं।
विवके जी की कहानी ‘ऐ गंगा तुम बहती हो क्यूँ ?’ ऊँचे वर्ग के प्रगतिशील विचारवाले युवक तथा अपमान, अच्छूतपन, शूद्रत्व के कलंक से पीडित दलित युवति की कहानी है, जो विजातिय होकर भी समाज की रूढि परंपराओं, नियमों-उपनियमों, संस्कार-संस्कृति से उपर उठकर प्रेम विवाह करते है। फल स्वरूप उन्हे अपने परिवार से टूटें हुए रिश्ते-नातों का उपहार मिलता हैं। विवश होकर उन्हे अपने परिवार से अलग रहना पडता है। युवक रणवीर अपने ही परिवार से अपमानित, धुत्कारा गया, धकेला गया, लताडा गया है। वहीं युवति प्रतिभा रणवीर के परिवार से न अपनाने के साथ दोहरे अपमान, उपेक्षा, प्रताडना को सहती भीतर ही भीतर कसमसा ने के लिये व्याकुल है।.....पूरा आलेख पढने के लिए यहाँ चटकारा लगायें

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