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’दलित नारी की शोषण मुक्ति की संघर्ष गाथा है:सुशीला टाकभोरे की आत्मकथा ’शिकंजे का दर्द’

यह आलेख अंतर्राष्ट्रीय हिंदी साहित्यिक पत्रिका ''सृजनगाथा '' में छपा है | इसे पढने के लिए इस परिच्छेद के अंत में लिंक दी गई है |
     ’शिकंजे का दर्द’ दलित नारी के शोषण के विरूध्द के संघर्ष की गाथा हैं। जंगल में शिकारी व्दारा कसे गये शिकंजे में, जब कोई जानवर फंस जाता है। मुक्ति के लिए उसके भीतर से दर्दनाक चीख बाहर निकलती है। वह जितना अपने आपको मुक्त करने के लिए छटपटाता है, दर्द उतनाही बढ़ते जाता है। दर्दनाक चीख, सिसकियॉं और कराह में तथा सिसकियॉं एवं कराह मुक वेदना में कब परिवर्तीत होती है पता ही नही चलता। वह मजबुर, लाचार, विवश होकर दर्द, पीड़ा, दुःख, को लगातार सहता पड़ा रहता है, जंगल के किसी एक कोने में तड़फ-तड़फकर मरने के लिए। दलितों में भी दलित समझे जानेवाली नारी मनुवादी समाज, दलित समाज, मनुवादी मनोवृत्तिवाले पुरूषीय समाज के शिकंजे में वह कई वर्षों से फॅंसी भीतर से मुक्ति के लिए छटपटाती अपने नारी जीवन को कोसने के लिए विवश दिखायी देती हैं। जन्म से लेकर मृत्युतक आत्मपीडन, पीड़ा, संत्रास, घूटन, अन्याय, अत्याचार, दुःख, दर्द, उपेक्षा को सहते-सहते मनुवादी समाज और मनुवृत्तिवाले पुरूषों के विरूध्द आज की दलित नारी में आक्रोश और विद्रोह प्रकट हो रहा हैं। वह समझ चुकी है कि यदि इस शिकंजे से मुक्ति पाना हो तो शिक्षा ग्रहन करनी ही होगी। ....पूरा आलेख पढने के लिए यहाँ चटकारा लगाये 


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