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भविष्य का संरक्षण

                                                                                                                                सौ. संगीता ढानीवाला                                                                                                                                                 
आचरण नहीं बदलेगा इन्सान जबतक
प्रकृति सहती रहेगी नुकसान तबतक
क्यों सोचते हो वह सिर्फ देगी ही देगी
जो छीना है तुमने उससे ,वापस जरुर लेगी |

महत्वकांक्षाओं के पीछे ना इतना दौड़ो
कि अपना ही रौंदो भविष्य, अपने स्वप्न तोड़ो
प्रकृति के साथ खेलोगे तो पछताओगे
इसने आक्रोश ढाया तो बच के कहाँ जाओगे ?


बांध ली नदियाँ,काट दिये पेड़ विशाल
कहीं बाढ़ ढाये गजब, तो कहीं पड़ा अकाल
सृष्टि का दामन नोच लिया जब
आँचल भास्कर का टोच ही दिया तब |

प्राणवायु का मार्ग हो गया अवरुद
जननी गंगा का जल तूने लिया अशुद्ध
मानव तेरा भविष्य कौन सी गर्त समायेगा
आज ही संभाल ले,कल की क्या शर्त लगायेगा |

मशीनों का जंजाल बुन, तू स्वयं मशीन हो रहा
अपने ही कंधो पर अपने ही बच्चों की लाश ढो रहा
जाग ! बचा ले जननी धरती के प्राणी
भविष्य बन जाएगा एक नई सुन्दर कहानी |

ना बन लाचार मशीनों के हाथ
संवारले जीवन, जी पेड़ पौधों के साथ
प्यार का प्रतिफल प्यार यही जीवन का छंद हैं
जान इन्हें, बचा इन्हें, ये हैं तेरे भाई-बंध हैं |


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