अमेस्टल गंगा में पढ़े मेरा आलेख पर चटकारा लगायें |
नेदरलैंड की
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी पत्रिका में पढ़ें मेरा एक दलित विमर्श पर आधारित आलेख ''हिंदी साहित्य में
दलित चिंतन ''साहित्य
समाज के प्रति प्रतिबद्ध होता हैं | वह समय का सजग प्रहरी हैं |साहित्य में
मुखरित होनेवाले विषय ,समस्या ,प्रश्न
समय के साथ परिभाषित होते रहते हैं |साहित्य परिवर्तन और
प्रगति को लेकर चलता हैं |पर मानवीय मूल्यों एवं संवेदनाओं
को वह दर किनार नहीं करता |वह समाज का जीता-जगता चल चित्र
प्रस्तुत करते हुए समाज उन्नति की ओर दिशा निर्देश करता हैं | हिंदी साहित्य काल ,दर्शन ,वाद
के भँवर से बहार निकलते हुए आज इक्कीसवी सदी में विमर्शों के दौर से गुजरता हुआ
दिखाई देता हैं |युवा विमर्श ,घुमंतू
विमर्श ,विकलांग विमर्श ,दलित विमर्श ,आदिवासी विमर्श ,स्त्री विमर्श ,अल्पसंख्यांक विमर्श आदि विमर्शो तथा आंदोलनों ने हिंदी साहित्य को एक नई
दिशा प्रदान की हैं |
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