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सच की लकीरें

तुम जो देख रहे हो
इस काग़ज़ पर
यह सब कोई कविता नहीं
यह मैं हूँ...तुम हो...
हम सब ही तो हैं...
यह तो सच की वो लकीरें हैं
जो हमारे आसपास
चारों ओर हर कहीं
जाल की तरह बिछी हैं
जिनके बीच से अक्सर
रोज़ होता है हमारा गुज़रना
और हम प्राय: उन पर
छोटी-मोटी टिप्पणी कर
बिना ज़्यादा ध्यान या तवज़्ज़ो दिए
बढ़ जाते हैं अपनी मंजिल की ओर
पर हम अगर ध्यान से देखें
तो इन लकीरों में छिपी है एक दास्तान
यही तो हैं वो महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़
जिनमें बयाँ है इस संक्रमण काल का सच
जिसमें कितना कुछ नया सृजन हो रहा है
तो कितना ही कुछ पुराना मिट रहा है
यूँ भी बिना मिटाए वक़्त की स्लेट पर
नया लिखा जाना भी तो नामुमकिन होता है ना
इतिहास बनने के लिए वर्तमान को तो मिटना ही पड़ता है
और तब ही तो भविष्य वर्तमान बन जाता है
यूँ भी बिना विदा हुए आगमन
बिना बिछुड़े हुए मिलन
कहाँ संभव है??











कवियत्री 
डॉ. सारिका मुकेश का परिचय
प्रकाशन लेखा-ज़ोखा: ‘पानी पर लकीरें’ (कविता संग्रह(, ‘एक किरण उजाला’ (कविता संग्रह(, ‘खिल उठे पलाश’ (कविता संग्रह(, ‘Teaching English Language: A New Perspective, ‘शब्दों के पुल’ (हाइकु-संग्रह)
सम्मान: श्री मुकुंद मुरारी स्मृति साहित्य संस्थान, कानपुर (उ.प्र.) द्वारा साहित्य श्री (वर्ष 2012-13) सम्मान.
         यदुनन्दन्स सेवा संस्थान, कानपुर (उ.प्र.) द्वारा समाज में उल्लेखनीय योगदान हेतु ‘शिक्षा रत्न सम्मान 2012’.
संपर्क: वी.आई.टी. विश्वविद्यालय, वेल्लौर (तमिलनाडू) 
सचल दूरभाष:            +91 81241 63491
-मेल:                     tyagisarika27@gmail.com

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