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कन्नड़ में अनुवादित ‘’भ्रूण ‘’ एकांकी नाटक का विमोचन

                              

             साहित्य समाज का प्रतिबिंब होता हैं | साहित्य के माध्यम से ही मनुष्य के विचारों की गर्भ नलिका जोड़ी जा सकती हैं | साथ ही साहित्य के द्वारा मानसिक एवं बौद्धिक परिवर्तन हो सकता हैं | इसीलिए कई भाषाओँ का साहित्य अनुदित होने की प्रक्रिया आवश्यक बन जाती हैं |किन्तु प्रभावी अनुवाद के लिए भाषा पर प्रभुत्व जरुरी हैं | नव साहित्यकार डॉ.सुनील जाधव द्वारा रचित ‘’भ्रूण’’ एकांकी नाटक के अनुवादक डॉ.संजीवकुमार पंचाल जी ने इस एकांकी का अनुवाद कर भाषा की प्रभुता सिद्ध कर दी है | ऐसा कन्नड़ में अनुदित ‘’भ्रूण’’ एकांकी के विमोचन समारोह पर मराठी के साहित्यकार प्रो.जगदीश कदम जी ने कहा |

            भाषा की प्रगल्भता तब है, जब अपनी भाषा का साहित्य सीमित न रखते हुए वह अन्य भाषा तक प्रसारित हो..|  जिस प्रकार नदी गाद, कचरा अपने साथ बहाकर लाती है किन्तु वह गाद, कचरा तल में समाहित कर पथिक की प्यास  स्वच्छ जल से बुझती हैं | उसी भांति प्रो.डॉ.सुनील जाधव जी द्वारा लिखित ‘’भ्रूण’’ एकांकी के अनुवादक डॉ.संजीवकुमार पंचाळ जी ने प्रवाहित साहित्य से उत्तम देंने का प्रयास किया है | ऐसा कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ.विजयसिंह ठाकुर जी ने  कहा | कार्यक्रम का सूत्रसंचालन प्रो.डॉ.शंकर विभुते जी ने तो आभार डॉ.सुनील जाधव जी ने किया | इस अवसर पर  प्रो.डॉ..टी.सूर्यवंशी, प्रो.डॉ.अजय गव्हाने, प्रो.डॉ.सगीता घुग्गे, प्रो.डॉ. ज्योति मुंगल आदि की उपस्थित थे |

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