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साहित्य मन का डॉक्टर होता हैं –डॉ.सुनील जाधव


भरतीय जीवन बीमा निगम,नांदेड़  में 
प्रमुख अतिथि के रूप में वक्तव्य देते हुए डॉ.सुनील जाधव 

हिंदी पखवाड़ा समाप्ती के अवसर पर भरतीय जीवन बिमा निगम, नांदेड़ के हिंदी सपर्क अधिकारी एवं हिंदी राजभाषा अधिकारी द्वारा हिंदी मार्गदर्शन एवं पुरस्कार सम्मान समारोह में प्रमुख अतिथि के रूप में हिंदी विभाग यशवंत महाविद्यालय, नांदेड़ के सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार डॉ.सुनील गुलाबसिंग जाधव को आमंत्रित किया गया था |

डॉ.सुनील जाधव ने भारतीय जीवन बिमा निगम के सभी कर्मी एवं अधिकारीयों को सम्बोधित करते हुए पहले हिंदी का ईतिहास बताया और क्रमशः भाषा में लिखा हुआ साहित्य कैसे मन का डॉक्टर होता हैं, इस पर विस्तार से अपना वक्तव्य दिया | उन्होंने कहा आज से एक हजार वर्ष पूर्व हिंदी ने बोली से भाषा का रूप धारण कर लिया था | कोई भी बोली तब भाषा बनती हैं, जब उस बोली में समृद्ध साहित्य लिखा जाता है | हिंदी भाषा भी ऐसी ही समृद्ध भाषा हैं |  जिसे समृद्ध करने में आदिकाल से लेकर आज तक विभिन्न कवियों, संतों, व्याकरणिकों, भाषाविदों,साहित्यकारों, आलोचकों, समीक्षकों, वक्ताओं का बहुत बड़ा योगदान रहा हैं | इसी के प्रति समर्पित स्व रचित कविता ‘आदिकाल का साहित्य हो या हो वीरों की जवानी, युद्धवीरों का हो शृगार या हो भक्तो की बाणी |’ प्रस्तुत कर हिंदी साहित्य के ईतिहास से अवगत कराते हुए समा बांध लिया |  पाठशालाओं, महाविद्यालयों में पढाये जाने वाले भाषा विषय की अनावश्यकता पर जब प्रश्न चिन्ह उठाये जाते हैं , भाषा के महत्व को  बताने के लिए कहा कि बिना भाषा के कोई भी विषय अभिव्यक्त ही नहीं हो सकता | विज्ञान जहाँ मनुष्य की बाहर की बिमारियों कोड दूर उसे स्वस्थ प्रदान कर सुरक्षा देता हैं, वहीं हिंदी आदि भाषा में लिखा हुआ साहित्य मनुष्य के मन की विभिन्न बिमारियों को दूर करने का काम करता हैं | मनुष्य निराशा, पीड़ा, हताशा, दुःख, दर्द, घबराहट, अकेलापन, सूनापन, डिप्रेशन, घुटन आदि बिमारियों से ग्रसित हैं | साहित्य उसे दूर करने का काम करता हैं | कभी वह हँसता हैं, कभी वह उत्साह को, नई चेतना, उमंग को जगता हैं , तो कभी आशा का संचार करता हैं | मनुष्य का जीवन गतिमान जब निराशा और दुःख के कारण यह गति रुक जाती हैं तब साहित्य उसकी गति बढ़ाने का काम करता हैं |
कार्यक्रम का संयोजन एव अतिथि का परिचय राजभाषा अधिकारी सुशिल भगत ने तो हिंदी सम्पर्क अधिकारी वी.वा. कूटे  ने अपना मन्तव्य रखा | कार्यक्रम का अध्यक्षीय स्थान पर विभागीय मण्डल अधिकारी लामतुरे थे |मंच पर विपणन प्रबंधक सालवे  तो कार्यक्रम के परिश्रम में अशोक जाधव ने योगदान दिया |  

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