नागार्जुन अनेक भाषाओं के गहरे जानकार थे।
विषेष रूप से संस्कृत भाषा का उनका अध्ययन बडा सघन था। भवभूति, कालिदास, माघ जैसे महाकवियों का उन पर
गहरा प्रभाव था। इसी कारण उनकी हिन्दी कविता पर संस्कृत भाषा के काव्यषास्त्रीय
रूप का गहरा प्रभाव दिखाई पडता है। जिस प्रकार से प्रतीकों के प्रयोग से अर्थ की
सार्थकता बढ जाती है उसी प्रकार से बिंब प्रयोग से भी कविता की सांकेतिकता में
बहुत वृध्दि होती है। नागार्जुन की कविता में अनेक स्थलों पर उच्च कोटि के संस्कृत
के समान शास्त्रीय बिंबो का प्रयोग हुआ है। वह भलि-भांति जानते हैं कि सार्थक बिंब
ही
कविता के प्राण हैं। जिसमें कल्पना के माध्यम से पाठकों के सामने विधात्मक रूप
प्रस्तुत किया जा सकता है। इस विषय में डॉं. ओमप्रकाष गौतम का मत दृष्टव्य है, ‘‘बिंब कल्पना और स्मृति की वह
क्रिया है, जो शब्दों व्दारा रूप ;चित्रद्ध प्रस्तुत करके
पाठकों के मन को प्रभावित करती है। बिंब-विधायक कल्पना पुनरूत्पादक कल्पना होती
है। कवि अतीत की घटनाओं, स्थितिओं और मूलभूत पदार्थो को उनके रंग, ध्वनि, गति, आकार-प्रकार के साथ शब्दों
को चित्र के रूप में प्रस्तुत करता है।’’1 इस कथन से यह स्पष्ट हो जाता
है कि बिंब कल्पना स्मृति की वह कल्पना है, जो शब्द के व्दारा चित्र
प्रस्तुत करती है। बिंब के सफल प्रयोग के व्दारा ही कवि अपने पाठकों के साथ
तादात्म्य स्थापित कर लेता है, क्यांकि डॉ. नगेंद्र के
मतानुसार,
‘‘काव्य
बिंब शब्दार्थ के माध्यम से कल्पना व्दारा निर्मित एक ऐसी मानव छवि है जिसके मूल
में भावों की प्रेरणा रहती है’’2 इस प्रकार डॉ. नगेंद्र
स्पष्ट करते हैं कि कविता में बिंब के मूल
में भावों की प्रेरणा रहती है ओर एक कुषल रचनाकार बिंबविधान को जहॉं सरल और सहज
शब्दों के माध्यम से उपस्थित करता है, वहॉं उसे वह कई बार अलंकृति
के माध्यम से भी उपस्थित करता है। यहॉं यह ध्यान रखना होगा कि सहज और सफल बिंब वे
होते हैं, जो एंद्रीय संवेदनाओं व्दारा
खडे किए जाते हैं। नागार्जुन ने अपनी कविताओं में जिस प्राकर से बिंबो का प्रयोग
किया है, जिसके कारण उनकी कविता में
एक प्रकार की सरसता ओर सहजता आ गई है। उन्होंने बिंब प्रयोग कहीं स्मृति के माध्यम
से किया है, तो कहीं ऐंद्रिय संवेदनाओं
के माध्यम से। संस्कृत के महकवि कालिदास से अत्याधिक प्रभावित होने के कारण
नागार्जुन ने ‘बदलों को घिरते देखा है’ नामक कविता में बडे उच्च
कोटि के बिंबों का प्रयोग किया है। कवि ने ‘अमल धवल गिरि के षिखरों पर
बादलों को घिरते देखा है’ कहकर एक अत्याधिक प्रकृति सौंदर्य से परिपूर्ण
दृष्य को पाठकों के सामने जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है। जो दृष्य बिंब का
अपूर्व उदाहरण है। दृष्य बिंब ही कविता में महत्व के होते हैं। डॉ. नगेंद्र के
विचारानुसार,
’’दृष्य
या चाक्षुष बिंब आकारवान होते हैं।’’3 नागार्जुन की कवितामें अनेक
स्थलों में जिस दृष्य बिंब को कवि ने अंकित किया है, वह कवि के अद्भूत कौषल्य का
ही परिणाम है।
उदाहरण दृष्टव्य है -
अमल धवल गिरि के षिखरों पर बादलों को घिरते
देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे अतिषय शीतल बारीक कणों को
मनसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर देखा हैं।’’
नागार्जुन ने इस कविता में जो चित्र अंकित किया
है, वह सजीव रूप से पाठकों के
सामने आता है। इसी प्रकार के जीवंत चित्र अंकित करने का कौषल्य नागार्जुन की कविता
में सर्वत्र दिखाई देता है। इस कविता में कई बिंबो का प्रयोग हुआ है, जो भिन्न-भिन्न भावों को
आकार देती है। दृष्य बिंब का एक और उदाहरण -
पूस मास की धूपसुहावन
फटी दरी पर बैठा है चिर रोगी बेटा
राषन के चावल के कंकड बिन रही पत्नी बेचारी
गर्भ भार से आलस शीतल है अंग-अंग।5
इस प्रकार के दृष्य बिंब के अद्भूत उदाहरण देने
का साहस केवल नागर्जुन में ही है। उन्होंने अनेक कविताओं में स्मृति बिंब का
प्रयोग बडी कलात्मकता से किया है। कवि अपने सारे जीवन में घूमते रहा है और
घुमक्कडी मंे अपनी प्रिय मिथिला भूमि की याद हमेषा आती रही है। इस प्रतिबिंब के
विषय में डॉ. नगेंद्र का मत दृष्टव्य है ‘‘जब कल्पना प्रायः निष्क्रिय
रहती है और स्मृति के व्दारा बिंब की उद्बुध्दि होती है, तब स्मृति बिंब की सृष्टि
होती है। अतीत के अनुभव के आधार पर यथार्थ परक बिंब स्मृत बिंब कहलाते हैं।6 इस प्रकार के स्मृत बिंब के
अत्यंत कलात्मक उदाहरण नागार्जुन की कविताओ में अनेक स्थलों पर देखने को मिलते
हैं। उनकी ‘सिंदूर तिलकित भाल’ नामक कविता में स्मृत बिंब
का यह उदाहरण दृष्टव्य है -
याद आता मुझको वह तरउनी ग्राम
याद आती लिचियॉं वे आम
याद आते मुझे मिथिला के रूचिर भू-भाग
याद आते धान,
याद आते कमल, कुमुदनी तालम खान।7
काव्यषास्त्रीय दृष्टि से इस प्रकार के उच्च
कोटि के स्मृत बिंब का प्रयोग बहुत कम कवियों में देखने को मिलते हैं। वैसे दृष्य
बिंब के प्रयोग में भी उन्होंने अपनी कलात्मक दृष्टि का परिचय दिया है। उनकी एक कविता
में दृष्य बिंब के प्रयोग में कवि की सूक्ष्म दृष्टि और पकड के कारण दृष्य को
ज्यों का त्यों उपस्थित किया गया है। यह सामर्थ्य भी नागार्जुन जैसे कवि का ही है।
उदाहरण दूष्टव्य है-
ग्रामवासिनी नगरवासिनी
माताओं बहनो बहुओं की, रूकी निगाहें, झुकी निगाहें
क्रूध्द निगाहें, क्षुब्ध निगाहें
डरी निगाहें, भरी निगाहें ।8
दृष्य बिंब के इतने सुदर और सफल प्रयोग
नागार्जुन की कविताओं में अनेक स्थलों पर मिलेंगे। कवि समाजवादी विचारधारा का है।
श्रमिक और मजदूर वर्ग तथा उनकी संवेदनाएॅं उनकी कविता में सर्वत्र हैं। परिश्रम
करने वाले वर्ग की यथार्थ स्थिति का चित्रण करते हुए उन्होंने दृष्य बिंब के जो
उदाहरण अपनी कविता के माध्यम से अंकित किया है, वह दृष्टव्य है। यह कवि
रिक्षा चलाने वाले परिश्रमी व्यक्ति के कुलिष कठोर पैर को देखकर कहता है-
देर तक टकराए उस दिन ऑंखो से व पैर
भूल नहीं पाऊॅंगा फटी बिवाईयॉ
खूब गई दुधिया निगाहों मे
धंस गई कुसुम कोमल मन में ।9
इस प्रकार के कलात्मक और शास्त्रषुध्द उदाहरण
नागार्जुन की कलम का ही चमत्कार है । इसी तरह नागार्जुन ने कई कविताओं में
अमृत-वस्तुओं का मानवीकरण कर स्पर्ष बिंब के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। इस स्पर्ष
बिंब के विषय में डॉ. नगेंद्र का यह मत दृष्टव्य है, ‘‘स्पर्ष बिंब में स्पर्षजन्य
संवेदनाओ के समन्वय से बिंब का निर्माण हेाता है।’’10और इस प्रकार के स्पर्ष बिंब
का प्रयोग नागार्जुन की अनेक कविताओं मे हुआ है। इस दृष्टि से कवि की ‘षिषिर विषकन्या’ कविता उल्लेखनीय है, जिसमें स्पर्ष बिंब का
उत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिलता है।
हजार बाहों वाली षिषिर विषकन्या
उतरी लेकर सॉंसो मंे प्रलय की वन्या
हिमदग्ध होठों के प्राणषोषी चुंबन
तन-मन पर लेप गए ज्वालामुखी चंदन
एक-एक सिरा में सौ-सौ सुईयों की चुभन
अद्भूत वह भुजपाष अद्भूत आलिंगन। 11
इस प्रकार के अनेक उदाहरण नागार्जुन की कविता
में बिखरे पडे हैं। ‘तन गई रीढ’ नामक कविता में कवि ने जिस
प्रकारसे स्पर्ष बिंब का प्रयोग किया है, वह विलोभनीय है। उदाहरण
दृष्टव्य है -
झुकी पीठ को मिला/किसी हथेली का स्पर्ष/ तन गई
रीढ।12
इस प्रकार के अत्यंत मोहक और सुंदर उदाहरण
नागार्जुन की कविताओं मंे ढेर सारे मिलेंगे। उन्होंने श्रव्य बिंब का प्रयोग भी कई
स्थलों पर किया है। श्रव्य बिंब के बडे मार्मिक उदाहरण हमें उनकी कविता में अनेक
स्थलों पर मिलते है ’प्रेत का बयान’ उनकी यथार्थवादी कविता है, पर इस कविता मंे कवि ने
श्रव्य बिंब का जो प्रयोग किया है, वह बडा ही प्रेक्षणीय बन पडा
है। उदाहरण दृष्टव्य है -
नचाकर लंबी चंमचों सा पंचबुराहाल
रूखी पतली आवाज में
खड खड खड खड , हड हड हड हड
कॉंपा कुछ हाडों का मानवीय ढांचा।13
इस प्रकार के उदाहाणों से कवि का समस्त काव्य
भरा हुआ है। कवि नागार्जुन समाजवादी विचारधारा के कवि है, इसलिए उनकी कविता में यथार्थ भाव अधिक व्यक्त हुए हैं, फिर भी अनेक स्थलों पर
उन्होंने यथार्थ भावों के साथ-साथ सुंदर कल्पना भी की है। उनकी कविता में अनेक
स्थलों पर दृष्य बिब और श्रव्य बिंब का सम्मेलित रूप भी देखने को मिलता है।
उन्होंने राजकमल चौधरी के लिए लिखी गई श्रध्दांजलीपरक कविता में सम्मेलित बिंब का
जो प्रयोग किया है, वह बडा अर्थवान बन पडा है।
उदाहरण दृष्टव्य है -
तुम वही पंख जिसकी फसलें होती शतदल
युग की भ्रमरावली करती गुणगान अविरल ।14
इस प्रकार से कवि ने घ्राण बिंब का भी सुन्दर
प्रयोग किया है। घ्राण बिंब की दृष्टि से उनकी यह कविता दृष्टव्य है -
वृध्द वनस्पतियों की ठूंठी शाखाओं में
पेार-पोर टहनी - टहनी का लगा दहकने
टिसू निकले मुकुलों के गुच्छे गदराए
अलसी के निले फूलों पर नभ मुस्काए।15
कवि ने अपनी कविता में अनेक स्थलों पर प्रतिचित्रात्मक
बिंबो का भी सुन्दर प्रयोग किया है। उनकी इस प्रकारकी कविताओं में भाव बिंबों की
कमी नहीं है। उनके व्दारा प्रयुक्त यह भाव बिंब इतने स्पष्ट हैं कि भाव की अपेक्षा
प्रतिकृति ही अधिक अभिव्यक्त होती है। प्रतिचित्रात्मक बिंब के उदाहरण ‘देखना ओ गंगा मै्या’, ‘बसंत की अगवानी’ आदि कविताओं में देखे जा
सकते हैं। एक उदाहारण दृष्टव्य है -
रेलगाडी के पेसिंजर, खिडकियों से झांकते हैं
देखते हैं बाढ का यह दृष्य
इधर झॉंसी उधर दारागंज,
बीच का विस्तार, बन गया आज पारावार ।16
नागार्जुन ने कई कविताओं में सरल बिंब भी
चित्रित किए है। उनकी ‘बापू के प्रति’ कविता में सरल बिंब का चित्र
देखा जा सकता है -
षिषु सुलभ सरल मुस्कान लिए, शायद तुम हम पर हॅंसते हो,
छोडो इस दिल में क्या है, नाहक ही अंदर घूसते हो।17
व्यक्तियों के प्रतिचित्रात्मक बिंब भी
नागार्जुन की कविताओं में अनेक स्थलो पर देखने को मिलंेगे। उनकी एक कविता है,‘नाकहीन मुखडा।’ इस कविता में व्यक्ति के
प्रतिचित्रात्मक बिंब का सुंदर निरूपण हुआ है। ठंड से ठिठूरते हुए और गठरी बने हुए
सर्वहारा कायह चित्र सफल व्यक्ति प्रतिचित्रात्मक बिंब का ही है। उदाहरण दृष्टव्य
है-
हिली- डुली/ वो देखो हिली-डुली गठरी
दे गया दिखाई झबरा माथा।
सुलग उठी माचिस की तिली
बिडी लगा थुकने नाकहीन मुखडा है।18
नागार्जुन की कविता मंे प्रकृति के चित्रात्मक
बिंब भी देखने को मिलते है। ’बसंत की अगवानी’ कवितामें प्रकृति के
चित्रात्मक बिंब का उदाहरण दृष्टव्य है-
टूट पडे भॅंवरे रसाल की मंजरियों पर
मुरख न जाए सहजन की ये तुनुक टहनियॉं
मधुमक्खी के झुंड भिडे हैं
डाल-डाल में
जौ गेहूॅं की हरी-हरी बालों पर छपयी
स्मित-भास्कर कुसमाकर की आषिष रंगिली ।19
इसी प्रकार से नागार्जुन के काव्य में
व्यक्तिपरक गत्यात्मक बिंब के उदाहरण भी देखने को मिलते हैं। यह उदाहरण दृष्टव्य
हैं -
कहीं-कहीं पर नागार्जुन अर्थगर्भित अध्यात्मिक
बिंब का भी प्रयोग किया है। जिसका निम्नलिखित उदाहरण दृष्टव्य है-
नहीं स्मषानी शांति चाहिए, नहीं वैष्णवी शांति चाहिए
नहीं भैरवी शांति चाहिए, नहीं निर्गुनी शांति चाहिए
हम इच्छुक हैं सगुण शांति के।21
इस प्रकार हम देखते है नागार्जुन ने अपनी
कविताओं में भिन्न - भिन्न प्रकार के बिंबों का बडा सुंदर, सफल कलात्मक प्रयोगकिया है।
कहीं-कहीं तो उनके बिंब इतने मधुर और कलात्मक बन पडे हैं कि जिसकी कोई सीमा नहीं ।
इसलिए डॉ. भट्ट का यह कथन सार्थक लगता है, ‘‘ऐंद्रीय बिंबों ओर स्मृत
बिंबों का सफल प्रयोग उन्होंने किया है। कहीं-कहीं अभिधात्मक उक्तियों में कवि के
बिंब भी अपने संस्कृतनिष्ठ भाषा से युक्त कविता मंे प्रस्तुत किया है।’’22 इस कथन से भी यह स्पष्ट हो
जाता है कि बिंब प्रयोग के विषय मंे नागार्जुन ने सीमित या मर्यादित होकर बिंबों
का प्रयोग नहीं किया अपितु भिन्न प्रकार के बिंबों का प्रयोग उन्होंने किया है।
ऐंद्रिय और स्मृत बिंबो के प्रयोग में कवि को अत्याधिक सफलता प्राप्त हुई है।
एंेद्रीय और स्मृत बिंबों को उन्होनें कहीं-कहीं जो शास्त्रीय रूप अभिव्यक्त किया
है, उससे उनकी काव्य - भाषा
बडी ही समृध्द और संपन्न लगती है। वैसे भी इस कवि का भाषा पर जबरदस्त
अधिकार है।
चालभाष 9405384672
Suniljadhavheronu10@gmail.com
[ हिंदी साहित्य विविध आयाम ] पुस्तक से
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