1.
असुंदर
करूप लड़की का चित्रण
2.
गुणों
की सुंदरता का चित्रण
3.
समाज
की कुचिंता का चित्रण
4.
समाजिक
करूपता का चित्रण
5.
मनोरोग
का शिकार
6.
करूपता
एक अभिशाप
माँ
इसको कहती है रानी,
आदर
से, जैसा नाम;
लेकिन
उसका उल्टा रूप,
चेचक
के दाग,काली, नाक-चिपटी,
गंजा-सर,
एक आँख कानी |
बच्चे कैसे भी क्यों
न हो किन्तु माँ के लिए तो वह सबसे सुंदर होते हैं | इसीलिए इस कविता में असुन्दर,
करूप, कानी बेटी होने के बावजूद भी कविता के भीतर माँ अपनी बेटी से बड़े आदर से
रानी कहकर पुकारती है, जैसे वास्तविक सौन्दर्य से युक्त रानी होती है | किन्तु
रानी का शरीर नाम के विपरीत हैं | उसके शरीर पर चेचक के दाग है, उसका रंग काला है,
नाक चिपटी हुई है, सर गंजा है और एक आँख कानी है |
रानी
अब हो गयी सयानी,
बीनती
है, कांडती है,
कूटती है, पीसती
है,
डलियों
के सीले अपने रूखे हाथों मिसती है,
घर
बुहारती है, करकट फेंकती है,
और
घड़ों भरती है पानी,
रानी अब सयानी अर्थात
विवाह योग्य हो गई है | वह रूप से सुंदर नहीं किन्तु वह कार्य से सुंदर गुणवान
लड़की हैं | वह सभी मेहनत और परिश्रम का काम करती हैं | वह बीनने का, कांडने,
कूटने, पीसने, डलियों के सीले अपने रूखे हाथों से मिसने, झाड़ू मारने, बुहारने,
करकट फेकने, दिन भर घड़ो से पानी भरने जैसे घर के सारें काम करती हैं |
फिर
भी माँ का दिल बैठा रहा,
एक
चोर घर में पैठा रहा,
सोचती
रहती है दिन-रात
कानी
की शादी की बात,
मन
मसोसकर वह रहती है
जब
पड़ोस की कोई कहती है-
“औरत की जात रानी,
ब्याह
भला कैसे हो
कानी
जो है वह !
सुनकर
कानी का दिल हिल गया,
रानी इतनी गुणवान
होने के बावजूद भी माँ का ह्रदय दुःखी है | उसके मन में कोई बात है, जो चोर की तरह
बैठा है | वह रात-दिन अपनी रानी के विवाह के बारें में सोचते रहती है | वह तब और
विवश हो जाती है, जब कोई पड़ोसी रानी के विवाह के बारें में कह जाती है | औरत की
जात हैं रानी | रानी एक आँख से कानी होने के कारण उसकी शादी कैसे होगी | जब पड़ोसी
की ऐसी बात रानी सुन लेती हैं | तब
दिल
हिल जाता है |
काँपे
कुल अंग,
दायी
आँख से
आँसू
भी बह चले माँ के दुःख से,
लेकिन
वह बायीं आँख कानी
ज्यों-की-त्यों
रह गयी रखती निगरानी |
उसका शरीर काँप ने
लगता है | जिस आँख से वह देख सकती है, वह दायी आँख से अपनी माँ के दुःख की पीड़ा के
कारण आँसू बहाती है | लेकिन बायी आँख जस की तस रहती है | और रानी पर वह निगरानी
रखती है | मानो उसमें संवेदना ही ना हो | वह समाज के मन के भीतर की करूपता को ही
व्यक्त करती हैं | जो समय-समय पर रानी जैसी लड़की को करूप होने का अहसास दिलाती है
| और उसे तथा उसके परिवार को दुःख और पीड़ा में विवशता से भरा हुआ जीवन जीने के लिए
छोड़ जाती है |
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