‘’
भिन्ड्डी कैसे दी ? ‘’
इस
पर जिला नांदेड के गाँधीनगर के चौक में
गाड़े पर सब्जी बेचती हुई बाई ने कहा ,
‘’ आँठ रूपये में पाव दिए साहब ..’’
मैंने
कहा ठीक है ,
‘’
एक पाव देना ..’’
और
मैंने चून-चूनकर एक पाव भिन्डी ली और दस रूपये का नोट सब्जीवाली बाई के हाथ में
टिका दिए |
‘’साहब,
दो रूपये का छुट्टा नही है , कोतमीर दू क्या ? अच्छी है |’’ कहते हुए उसने दो रूपये की कोतमीर हाथ में न
चाहते हुए थमा दी | मैंने कोतमीर की साईज देखी ..वह छोटे आकार की थी | मैंने
जिज्ञासा वश उसके पास रखी हुई कोतमीर की गड्डी में से एक कोतमीर के पौधे को हाथ
में लेकर सुंगते हुए कहा ,
‘’
क्या यह गवरानी [ देहाती ] कोतमीर है |’’
क्यों
की देहाती कोतमीर की खुशबू उसकी पहचान होती है |
खुशबू लेने के बाद मैंने उसे अपनी जगह पर रखना चाहा पर उसने रोकते हुए कहा
,
‘’
साहब, अब इसे यहाँ मत रखना | इसे फ़ेंक दो |’’
‘’क्यों
?’’
उसने
मुझे कहा,
‘’आपने
इसे छुकर सुंग लिया है | अब इसे कोई खरीदेगा नही |’’
मैंने
कहा ,
‘’मेरे
छूने से ...’’
‘’नही
साहब, बात वह नही | बात है, आपने उसे सुंगा ...|’’
मैंने
इस पर कहा ,
‘’
बाई ,तो का हुआ ? सुंगने और न खरीदने में सम्बन्ध ...मैं समझा नही |’’
‘’सुंगने
से अब इसे कोई खरीदेगा नही साहब | अब यह बेकार हो गया है |’’
मैंने
उस बेकार कोतमीर को उठाया | फेकने से अच्छा मैंने उसे अपनी थैली में डाला और दिमाग
को ज्यादा परेशान न करते हुए आगे बढ़ गया |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें