नांदेड़
में देश-प्रदेश में शिक्षा और साहित्य विषय पर अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार सम्पन्न
नांदेड़:-
दि.०८/०६/२० को समय-०२:०० बजे भारत, उज्बेकिस्तान,
श्रीलंका, मॉरिशियस,
रूस का
संयुक्त उपक्रम ‘शोध-ऋतु’
अंतर्राष्ट्रीय शोध-पत्रिका,
नांदेड़ एवं ताश्कंद प्राच्य-विद्या विश्वविद्यालय,
ताश्कंद-उज्बेकिस्तान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय वेबीनार ‘देश-प्रदेश
में शिक्षा और साहित्य’ का यू टूबे पर लाइव परसारण किया गया | इस वक्त वेबीनार के
मंच पर बीजवक्ता, उद्घाटक एवं अध्यक्ष के रूप में पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय,पटना
के प्रो.डॉ.मंगला रानी, अतिथि वक्ता
के रूप में ताश्कंद विश्वविद्यालय, ताश्कंद,उज्बेकिस्तान से प्रो.डॉ.सिरोजिद्दिन
नुर्मातोव, शैक्षिक एवं शोध आधिकारी, राजभाषा मंत्रालय, श्रीलंका से सौ.रिदिमा लंसकारा,
मॉरिशियस से पत्रकार एवं लेखिका सौ.सविता तिवारी, रूस से कवि, लेखक, वक्ता इल्या
ओस्तपेंको, वेबीनार के संयोजक-सूत्रसंचालक
शोध-ऋतु के सम्पादक डॉ.सुनील गुलाबसिंग जाधव उपस्थित थे | इस वेबीनार के लिए
देश-विदेश के ढाई हजार शोध-छात्रों एवं अध्यापकों ने पंजीकरण किया था |
कार्यक्रम का आरम्भ उज्बेकी एवं
भारतीय संगीत तथा मंगल गीत से हुआ | वेबीनार की भूमिका बाँधते हुए डॉ.सुनील जाधव
ने शिक्षा और साहित्य के पूरक सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए भारत में स्वयंपूर्ण
शिक्षा व्यवस्था को अपनाने पर बल दिया तथा शिक्षा का सम्बन्ध यदि चार दिवारी में
दी जानेवाली शिक्षा है तो साहित्य को
वैश्विक कक्षा में दी जानेवाली शिक्षा व्यवस्था बताया | क्रमशः संकल्पना स्पष्ट
करनेवाला बीजवक्तव्य देते हुए प्रो.डॉ.मंगला रानी ने अपनी बात रखी | शुरुआत में
भारतीय शिक्षा के वास्तविक रूप पर प्रकाश डालते हुए आत्मनिर्भर बनाने वाली शिक्षा
को अपनाने की बात कहीं | वहीं पर साहित्य को लेकर भारत के वेद ग्रंथों से लेकर
आजतक के साहित्य और उसके महत्व पर बल दिया | मनुष्य को दिशा दर्शाने वाला साहित्य बताया |
अतिथि वक्ता उज्बेकिस्तान से
प्रो.डॉ.सिरोजिद्दिन नुर्मातोव ने उज्बेकिस्तान की शिक्षा व्यवस्था को लेकर
उज्बेकी भाषा के साथ हिंदी भाषा में भी मिलने वाली शिक्षा की बात कहीं | तथा
उज्बेकी साहित्य पर विस्तार से अपनी बात रखते हुए उज्बेकी साहित्य से रूबरू कराया |
तथा ताश्कंद विश्वविद्यालय के कुलपति का शुभकामनावाला संदेश भी हमतक पहुँचाया |
अगले वक्ता श्रीलंका से रिदिमा लंसकारा
ने अपनी मधुर वाणी में अपने देश की शिक्षा को लेकर श्रीलंका के छात्रों, कलाकारों,
साहित्यकारों पर भारत का आदर्श प्रभाव बताया |
तथा अपने देश की समृद्ध साहित्य परम्परा पर प्रकाश डाला | वहीं मॉरिशियस के
अतिथि वक्ता सौ.सविता तिवारी ने अपने देश
में शिक्षा का आरंभ, विकास और वर्तमान को स्पष्ट किया | साथ ही वहाँ पर हिंदी के
प्रभाव को लेकर हिंदी में समृद्ध साहित्य रचे जाने की उदाहरण सहित बात कही | भारत
में लगनेवाले विश्व पुस्तक मेले में एक समय सबसे अधिक ३०० किताबे हिंदी में देने
का कार्य मॉरिशियस के लेखकों ने किया |
कार्यक्रम के अंत में अध्यक्षीय
समारोप प्रो. मंगला रानी ने किया तो आभार प्रदर्शन वेबीनार संयोजक डॉ.सुनील जाधव
ने किया | इस वक्त देश-विदेश से हजारों की संख्या में शोध-छात्र एवं अध्यापकों ने
लाइव वेबीनार का लाभ उठाया |
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