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3.पुस्तक परीक्षण: "बंद शहर बंद दरवाजे"- परीक्षण - प्रो.चंद्रकांत मिसाल, पुणे

 

3.पुस्तक परीक्षण: "बंद शहर बंद दरवाजे"

परीक्षण - प्रो.चंद्रकांत मिसाल, पुणे


  • लेखक: डॉ. सुनील गुलाबसिंग जाधव
  • प्रकाशक: अद्वैत प्रकाशनदिल्ली
  • प्रथम संस्करण: 2025
  • ISBN: 978-93-95226-51-6
  • मूल्य: ₹100/- 

लेखक: डॉ. सुनील गुलाबसिंग जाधव
प्रकाशन वर्ष: 2025
थीम: कोविड-19 महामारीलॉकडाउनमानवीय संघर्षसामाजिक चेतना


1. कथानक का संक्षिप्त विवरण:

नाटक "बंद शहर बंद दरवाजे" कोविड-19 के लॉकडाउन की पृष्ठभूमि में लिखा गया है। यह महामारी के कारण उत्पन्न संघर्षसामाजिक और आर्थिक संकटतथा मानवीय संवेदनाओं को चित्रित करता है। मुख्य पात्र विठ्ठल और बापुराव गाँव के किसान हैंजो महामारी के कारण स्वास्थ्य और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। लॉकडाउन के दौरानविठ्ठल अपने बीमार बड़े भाई बापुराव को अस्पताल ले जाने का संघर्ष करता है।

मुख्य घटनाएँ:

  1. लॉकडाउन के दौरान गांव में जीवन की कठिनाइयाँ।
  2. विठ्ठल का अपने भाई बापुराव के लिए बलिदान।
  3. गाँव की महिलाओं (रुक्मिणी और रामाबाई) की हिम्मत और संघर्ष।
  4. गाँव के सरपंच धनीराम का भ्रष्टाचार और उसका अंत।
  5. विठ्ठल की बैलगाड़ी यात्रा और संघर्षपूर्ण सफर।

2. पात्र परिचय और उनकी भूमिका:

मुख्य पात्र:

  1. विठ्ठल - 40 वर्षीय किसानबापुराव का छोटा भाई।
  2. बापुराव - 50 वर्षीय किसानजो बीमार है और जिसे अस्पताल ले जाने की जरूरत है।
  3. रुक्मिणी - विठ्ठल की पत्नीसाहसी और नारी सशक्तिकरण का प्रतीक।
  4. रामाबाई - बापुराव की पत्नीजो अपने परिवार के प्रति समर्पित है।
  5. सरपंच धनीराम - भ्रष्ट नेताजो गाँव की महिलाओं का शोषण करना चाहता है।
  6. पी.एस.आई. धीरज कुमार - ईमानदार पुलिस अधिकारीजो विठ्ठल की मदद करता है।
  7. सरजा और राजा - विठ्ठल के बैलजो उसके संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

3. संवाद और उद्धरण विश्लेषण:

(1) लॉकडाउन और सामाजिक संघर्ष:

बापुराव: "तालाबंदी! यह क्या है छोटूअब तक नसबंदीनशाबंदीनोटबंदी सुना था।"
विठ्ठल: "दादायह भी वैसी ही हैफर्क सिर्फ इतना है कि यह सारी दुनिया में है। बिना अति आवश्यक कार्य के कोई घर से नहीं निकल सकता।"

🔹 यह संवाद लॉकडाउन के सामाजिक प्रभाव को दर्शाता है। ग्रामीणों को इसकी गंभीरता समझाने के लिए विठ्ठल इसे नसबंदी और नोटबंदी से जोड़ता है।

(2) मानवीय संघर्ष और साहस:

विठ्ठल: "दादामरें तुम्हारे दुश्मन! अभी तुम्हारा छोटू ज़िंदा है। तुम्हें कुछ नहीं होगा।"
🔹 यह संवाद भाईचारे और आशा का प्रतीक है। विठ्ठल अपने भाई के जीवन को बचाने के लिए संघर्ष करता है।

(3) सरपंच धनीराम का भ्रष्टाचार और महिलाओं की हिम्मत:

धनीराम: "अगर तू मुझे कुछ समय अकेले दे देतो मैं तेरे पति को ट्रैक्टर से वापस लाने की व्यवस्था कर सकता हूँ।"
रुक्मिणी: "धनीराम! तूने औरतों को कमज़ोर समझने की बहुत बड़ी गलती कर दी है। ले! खा मेरी लात!"

🔹 यह संवाद ग्रामीण समाज में व्याप्त महिलाओं के शोषण और उनके प्रतिरोध को दर्शाता है। रुक्मिणी यहाँ नारी सशक्तिकरण की प्रतीक बन जाती है।

(4) बैलगाड़ी का संघर्ष और प्रतीकात्मकता:

विठ्ठल: "सरजा-राजाअब तुम्हारे ही भरोसे हैं। हमें शहर पहुँचा दो।"

🔹 बैल 'सरजा और राजासिर्फ पशु नहींबल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और जीवन के प्रतीक हैं।

(5) मानवता और पुलिस की भूमिका:

पी.एस.आई. धीरज कुमार: "विठ्ठल जीयह मेरी ड्यूटी है। अगर आज मैंने मदद नहीं कीतो मेरा वर्दी पहनना व्यर्थ है।"

🔹 यह संवाद पुलिस की नैतिक जिम्मेदारी को दर्शाता हैजो आम जनता की मदद के लिए तत्पर होती है।


4. नाटक के प्रमुख विषय-वस्तु:

  1. कोविड-19 का प्रभाव: नाटक महामारी के दौरान उत्पन्न सामाजिकआर्थिक और मानसिक समस्याओं को दर्शाता है।
  2. परिवार और प्रेम: विठ्ठल और बापुराव का संबंध सच्चे भाईचारे का उदाहरण है।
  3. नारी सशक्तिकरण: रुक्मिणी और रामाबाई जैसी महिलाएँ अन्याय का विरोध करती हैं।
  4. भ्रष्टाचार और अन्याय: सरपंच धनीराम गाँव की भोली-भाली महिलाओं का शोषण करता हैलेकिन अंत में पराजित होता है।
  5. संघर्ष और आशा: विठ्ठल हर कठिनाई के बावजूद हार नहीं मानता।

5. नाटक की विशेषताएँ:

 प्राकृतिक और सहज संवाद: ग्रामीण परिवेश और पात्रों के अनुसार संवाद लिखे गए हैं।
 भावनात्मक गहराई: नाटक में मानवीय संवेदनाएँ प्रमुखता से उभरकर आती हैं।
 यथार्थपरक चित्रण: कोविड-19 काल के संघर्षों को वास्तविकता के करीब रखा गया है।
 नाटकीयता और प्रभाव: दृश्यों का निर्माण दर्शकों को बाँधे रखता है।


6. निष्कर्ष:

"बंद शहर बंद दरवाजे" नाटक कोविड-19 महामारी की त्रासदी को दर्शाने वाला एक सशक्त नाटक है। यह सिर्फ महामारी की कहानी नहींबल्कि मानवीय साहसनारी सशक्तिकरण और सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष को भी उजागर करता है।

क्या यह नाटक सफल है?
🔹 हाँक्योंकि यह समाज के यथार्थ को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है और पाठकों-दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देता है।

क्या यह मंचन योग्य है?
🔹 हाँक्योंकि इसमें संवादभावनाएँ और दृश्यांकन बेहद प्रभावी हैं।


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