यथार्थ जमीन से उत्पन्न कथाएँ : डॉ. सुनील जाधव द्वारा लिखित ‘गोधड़ी’ कहानी संग्रह आलेख लेखक-डॉ. प्रा. वर्षा मोरे – पावडे
यथार्थ जमीन से उत्पन्न कथाएँ :
डॉ. सुनील जाधव द्वारा लिखित
‘गोधड़ी’ कहानी संग्रह
आलेख लेखक-डॉ. प्रा. वर्षा मोरे – पावडे
पीपल्स कॉलेज, नांदेड, महाराष्ट्र
मो. ९६०४४१४०७२
ईमेल : varshanmore@gmail.com
‘गोधड़ी’ कहानी के रचयिता डॉ.
सुनील जाधव महाराष्ट्र के नांदेड जिले से आते है | मातृभाषा इनकी ‘बंजारा’ है |
इनकी पढ़ाई ‘मराठी’ भाषा में हुई | हिंदी में वे निरंतर सर्जन कार्य कर रहे हैं | अंतर्राष्ट्रीय
स्तर पर निकलने वाली ‘शोध ऋतु’ नामक हिंदी तिमाही पत्रिका के वे संपादक है | अब तक
आपकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित एवं प्रसिध्द हुई हैं | जिसमें प्रमुख रूप से, ‘मैं
बंजारा हूँ’, ‘रोशनी की ओर बढ़ते कदम’, ‘सच बोलने की सजा’, ‘त्रिधारा’, ‘मेरे भीतर
मैं’(कविता संग्रह), ‘मैं भी इंसान हूँ’, ‘एक कहानी ऐसी भी’, ‘गोधड़ी’ यह तीन कहानी
संग्रह | (नाटक)‘तालाबंदी के वे दिन’, ‘ब्रह्मकमल’ (एकांकी संकलन ) अमरबेल तथा
अन्य एकांकी’, (आलोचनात्मक पुस्तकों में) ‘नागार्जुन के काव्य में व्यंग्य’,
‘रत्नकुमार साम्भरिया के नाटक अपनी-अपनी
दृष्टि’ आदि मौलिक पुस्तकों का सजृन
इन्होंने किया हुआ हैं | डॉ. सुनील जाधव अपनी जमीन एवं मिट्टी के धरातल पर
लिखनेवाले लेखक हैं | इनकी कथाओं में आया हुआ परिवेश हमें अपना-सा लगता है | जहाँ
कल्पना के बजाए यथार्थ के बिंदु अधिक समाहित है | अपनी बोली, रहन-सहन, संस्कृति,
संस्कार और हमारे अपने जीवन से संबंधित समग्र पैलुओं का अध्ययन करके रचनाओं का
निर्माण किया है|
‘गोधड़ी’ इस कहानी संग्रह का प्रकाशन २०१९
में हुआ है | जब इस कृति का लोकार्पण हुआ, तब में वहाँ उपस्थित थी | लेखक की
संवेदनशीलता और लेखन की शैली से प्रभावित तो मैं पहले से थी, लेकिन इस रचना को पढ़े
बिना उस से प्रभावित होना कहाँ तक उचित है? ऐसा मुझे लगा, इसलिए मैंने इस रचना को
पढ़े-बिना उस पर मन्तव्य रखना उचित नहीं समझा | आज मैं यह पुस्तक पढ़ चुकी हूँ, तो
इस पुस्तक के बारें में एक पाठक के नाते मुझे जो महसूस हुआ वह मैंने इस में देने
का प्रयास किया हैं | इस पुस्तक में लेखक की तेरह कहानियों का समावेश हैं | हर एक
कहानी अपने विषय, कथा, शीर्षक, शैली से भिन्न है | इन तेरह कहानियों में –
‘गोधड़ी’, ‘मैं बंजारे का छोरा’, ‘म कोनी मरे वाळ..’, ‘मच तार याडी छू ये...’, ‘एक
नन्हा-सा पक्षी’, ‘मेरे पेट में बच्चादानी नहीं है’, ‘जब खोया उसे विदेश में’,
‘मिस्टेक’, ‘काँटा’, ‘घौसला’, ‘प्रायश्चित’, ‘पापा मुझे कहीं नहीं ले जाते’,
‘कैची’, ‘प्यार का इंतजार’, इन शीर्षकों में लिखी हुई हैं | लेखक ‘बंजारा’ भाषा से
संबंधित होने के कारण उनकी कहानियों में बंजारा भाषा के शब्द, संवाद सहज ही आए हुए
हैं | हमारे जैसे पाठकों के लिए बंजारा भाषा के संवादों को उन्होंने हिंदी में
अनुवादित करके भी दिया हैं |
इस पुस्तक की कहानियों को पढ़ने के बाद हम लेखक का जमीन स्तर का संघर्ष महसूस
करते है | यह संघर्ष उनका अपना नहीं है, बल्कि समाज में स्थित हर व्यक्ति का
संघर्ष है, जो प्रेम, रिश्तों, परिवार, लोगों के बीच अपना जीवन व्यथित करता है |
संवेदना के धरातल पर लिखी गयी कहानियों में माँ का प्रेम, प्रियसी या प्रियकर का
प्रेम, पिता का प्रेम, पति का प्रेम आदि का महत्त्व समझ आता है | इस पुस्तक का
अध्ययन हम अलग-अलग दृष्टि से कर सकते है | स्त्री विमर्श का उदाहरण अगर देखना है
तो, ‘मेरे पेट में बच्चादानी नहीं है’ इस कहानी की नायिका अपने जीवन में माँ न बन
पाने का दुःख और उस कारण समाज में उस को मिला हुआ स्थान जिस को झेलते हुए किस तरह
जीती है | जिसे समझने के बाद एक स्त्री भी प्रथमत: ‘मनुष्य’ है | अगर वह किसी कारण
वश ‘माँ’ नहीं बन पाती तो, वह उसका अपराध नहीं हो सकता | यह संदेश हमें कहानी देती
है | ‘गोधड़ी’, ‘काँटा’, ‘मच तार याडी छू ये...’ इन कहानियों के माध्यम से स्त्री
की अपनी जमीन, उसका अपना अस्तित्व, उस अस्तित्व के लिए किया जाने वाला उसका अपना
संघर्ष दिखायी देता है | ‘काँटा’ कहानी की नायिका ‘नीलू’ अपने आपकों कमरें में बंद
करके जी रही है | उसके वैवाहिक जीवन में आयी दूरियों के कारण वह पश्चाताप कर रही
है | वहीं वैवाहिक दिन उसे काँटे बनकर चुभ रहे हैं | व्यक्ति गुस्से में बड़े-बड़े
शब्द इस्तमाल करता है और उन शब्दों के साथ अपने जीवन के कुछ निर्णय भी सुनाता है |
जो निर्णय गलत भी हो सकते है, इसके बारे में सोचता तक नहीं | जब समय बीत जाता है,
तब उसे भूतकाल में लिए गए निर्णय पर रोने के सिवाय कुछ बचता नहीं | ऐसा ही कुछ इस
नायिका के साथ होता है | बिता हुआ समय कभी, किसी के लिए भी वापस नहीं आता | इसका
उदाहरण हमें उक्त कहानी में मिलता है |
इस पुस्तक में स्त्री विमर्श केन्द्रित
कहानियों के अलावा वृध्द एवं बाल विमर्श को केंद्र में रखकर लिखी गयी कहानियाँ भी
है | बाल-मनोविज्ञान यह नहीं समझता की अपने पिता अपाहिज हो गए है और उसे उठाकर
कंधे पर लेकर खेलने के लिए नहीं ले जा सकते | दूसरे बच्चों के पिता अपने बच्चों के
साथ खेलते है, लेकिन ‘अनुज’ के पिता ऐसा नहीं कर पाते | यह पिता की विवशता, बेटे
अनुज की बाल-सुबोध भावनाएँ और अपने पिता से छोटी-छोटी आशाएँ आदि हमें भीतर से हिला
देती है | ‘मच तार याडी छू ये...’ इस कहानी में एक वृध्द स्त्री की समस्या चित्रित
हुई है | जायदाद के लिए समय पर खाना न देना, कमरे में बंद करके रखना, जब काम खत्म
हुआ तो उसे मार देना आदि प्रसंगों से वृध्दों की लाचारी, मजबूरी को लेखक ने बड़ी
गंभीरता से चित्रित किया है | आज वृध्दों की बढ़ती समस्याओं को देखते हुए यह कहानी
इन समस्याओं का एक उदाहरण बनती है | बड़े-बुजर्गों के नाम रहनेवाली जायदाद के लिए
उन्हें किस तरह सताया जाता है और जबरदस्ती जायदाद अपने नाम करवा के लेना और बाद
में उसे खत्म कर देना | यह इस कहानी का मूल विषय है |
‘समाज में आज भी निस्वार्थ प्रेम है’ यह
संदेश लेखक ने अपनी कहानियों के माध्यम से दिया है | बिना किसी चाहत के सामने वाले
व्यक्ति पर प्रेम करते रहना ही प्रेम की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी है | इस विषय पर
आने वाली कहानियों में ‘प्यार का इन्तजार’, ‘मिस्टेक’, आदि आती है | यहाँ व्यक्ति
प्रेम ही नहीं, देश प्रेम, प्रकृति प्रेम भी चित्रित हुआ है | अपने बनाये घौसलें
का संरक्षण एवं निर्माण की प्रक्रिया बड़ी बारीकी से लिखी गयी है | ‘जामून के पेड़’
पर बनाया गया घौंसला जब तूफान में टहनियों के साथ गिर जाता है | उसके बाद एक चिड़िया
व्दारा उसके लिए किया गया शोध अभियान हमें प्रकृति के सानिध्य का अनुभव कराता है |
निसर्ग प्रेमी पाठक यहाँ लेखक की कल्पना को दाद दिए बिना नहीं रह जाता | यह हमें
‘एक नन्हा-सा पक्षी’ इस कहानी में दिखायी देता है | यहाँ प्रकृति प्रेमी पाठकों के
लिए भी अलग अनुभूति की सोच लेखक ने की है |
सीमा पर तैनात जवान जब घर आता है, तो उसका
अपने घर की अवस्था को देखकर दु:खी होना | देश के लिए और अपने परिवार के लिए, ऐसे
दोनों कर्तव्यों का निर्वाह करने वाला जवान जब मुसीबत में पड़ता है, तो दायित्व को
ड्यूटी पर प्रत्यक्ष उपस्थित न रहते हुए भी निभाता हुआ दिखायी देता है | उसकी
ड्यूटी रिटायर्डमेंट के बाद भी समाप्त नहीं होती | देशभक्ति उसके भीतर कूट-कूटकर
भरी हुयी दिखायी देती है | ‘कैंची’ इस कहानी का नायक गोविन्द में यह सारे गुण
विद्मान है | अपनी बेटी को सेना में भरती करके उसका हौसला और बुलंद हो जाता है |
यह आदर्शवादी कहानी है, जो हर किसी को अपने देशभक्ति के लिए प्रेरित करती है |
इस पुस्तक के शीर्षक की अगर बात की जाए, तो
‘गोधड़ी’ यह बंजारा बोली का शब्द है, जिसे मराठी में ‘गोधड’ और हिंदी में ‘कम्बल’
बोला जा सकता है | माँ व्दारा फटे-पूराने कपड़ों से बनायी गोधड़ी की ऊब (गर्मी),
प्रेम यह वहीं समझ सकता है, जो हाथों से सिलाकर बनायी गयी गोधडी का इस्तमाल करता
है या कभी उसने किया है | जहाँ गरीबी है, वहाँ सर्दी से बचने का एकमात्र सहारा
गोधड़ी होती है | घुटने पेट में लेकर सोने वालों के लिए, ठंड या जाड़े के दिनों में
सर्दी से बचने के लिए यह गोधड़ी बहुत उपयोगी होती है | इस कहानी का नायक तुकाराम
की याडी (माँ) की मृत्यु हो जाती है | जिसके साथ उसकी गोधड़ी भी जलाने के लिए ले
जा रहे हैं | तुकाराम उसे अपने लिए रखना चाहता है | तब वह लोगों से कहता है, “क्या
ये सारी गोधड़ियाँ अपने साथ ले जाने वाली है क्या ? आखिर तुम लोग इसे जलाने वाले
ही तो हो | इससे अच्छा इसे मैं रख लेता हूँ | मुझे रात में बहुत ठंड लगती है, अब
तो वर्षा से यह जमीन भी गीली हो गई है | बिछाने के लिए भी तो चाहिए ना|” यहाँ
तुकाराम की गरीबी, उससे उत्पन्न विवशता समझ आती है | जो हमें हर मुसीबत से बचाती
है, वह गोधडी है |
यह पुस्तक हमें समाज के अलग-अलग विषय पर
सोचने के लिए मजबूर करती है | पुस्तक पढ़ने के बाद प्रेरणात्मक संदेश, कुछ सीख, कुछ
विचार मिलते है, जो हमें जीवन जीते समय उपयोगी हो सकते है | लेखक ने किसी एक विषय
को केंद्र में रखकर कहानियों का निर्माण नहीं किया है | इस पुस्तक की कहानियों में
रोचकता के साथ सार्थक संदेश देने में भी यह माहिर है | जाति-पाति से परे, प्रेम
निस्वार्थ भावना, देश-भक्ति, प्रकृति चित्रण आदि बिंदुओं को ध्यान में रखकर
कहानियों का निर्माण किया गया हैं | इस पुस्तक की भाषा साहित्यिक हिंदी के साथ-साथ
‘बोली’ का प्रयोग भी इसमें किया गया हैं | कुछ जगहों पर ग्रामीण शब्दों के साथ ‘बंजारा’
भाषा के शब्द भी सहज कथा को आगे बढ़ाते हुए नजर आते हैं | बंजारा भाषा के पर्याय रूप
में हिंदी भाषा का प्रयोग लेखक ने जान-बुझकर किया है, ताकि हिंदी पाठक उसे आसानी
से ग्रहण कर सके | ‘गोधड़ी’ इस पुस्तक को हिंदी के पाठकों ने एक बार जरुर पढ़ना
चाहिए, यह लेखक की स्व-अनुभूति, संघर्ष से उत्पन्न हुआ लगता है | जो पाठकों को
ध्यान में रखकर लिखनेवाला न होकर समाज को केंद्र में रखकर लिखनेवाला लेखक है |
इस किताब की ख़ासियत यह है कि, यह नव-दृष्टि,
नव विचार लेकर हिंदी जगत में उपस्थित हो रही है |

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