कहानी संग्रह ‘गोधडी’ पुस्तक परिक्षण (समीक्षा) लेखक : सुनील गुलाब सिंह जाधव, नांदेड - पुस्तक परिक्षण : धिरज बालासाहेब पावडे
कहानी संग्रह ‘गोधडी’
पुस्तक परिक्षण (समीक्षा)
लेखक : सुनील
गुलाबसिंग जाधव, नांदेड
पुस्तक परिक्षण : धिरज
बालासाहेब पावडे
मोबाइल :
9822630506
हिंदी साहित्य जगत के प्रसिद्ध
साहित्यकार के रूप में अपना नाम प्रस्तावित करने वाले नांदेड के युवा साहित्यकार
डॉ.सुनील जाधव द्वारा लिखित कहानी संग्रह ' गोधड़ी ' का प्रथम संस्करण एपीएन पब्लिकेशन उत्तम नगर नई दिल्ली 110059 द्वारा
प्रकाशित किया गया है। डॉ. सुनील जाधव जी का यह तीसरा कहानी संग्रह है । इस कहानी
संग्रह से पूर्व ' मैं भी इंसान हूॅं ' , ' एक कहानी ऐसी भी' यह दो कहानी संग्रह हिंदी साहित्य में अपनी पहचान एवं स्थान बना चुकी है।
पहले दो कहानी संग्रह की अपार सफलता के बाद डॉ. सुनीलजी द्वारा लिखित ' गोधड़ी ' यह तीसरा कहानी संग्रह अपार सफलता को छू
रहा है । साहित्य जगत के गणमान्य साहित्यकार भी बधाई पत्र भेजकर डॉक्टर सुनील
जाधवजी की मेहनत , लगन और साहित्यिक योगदान की जमकर तारीफ कर
रहे हैं ।
गोधड़ी कहानी संग्रह का मुख्य पृष्ठ
अत्यंत विलोभनीय है । जिसमें पाठकों का ध्यान आकर्षित करने की जबरदस्त क्षमता है
। विषय वस्तु से जुड़ा हुआ मुख्य पृष्ठ
बहुत कुछ कह जाता है । सुसंगत रंग संगती के साथ गोधड़ी की नायिका याडी ' नीलू
' अपनी कन्या सरजा बाई को रोटी का टुकड़ा दे रही है । भूख
गरीबी , दीनता , अभाव के साथ लड़ने का
एक मात्र साधन बस वही एक रोटी का टुकड़ा जो भूख से जंग करने वाला है । अंधेरा अभी
मिटने वाला है । स्वर्ण किरणे जीर्ण घरों के झरोखों से ताक रही है । यही परिवर्तन
की शुरुआत है । इतिहास साक्षी है कि, क्रांति की शुरुआत भूखे
पेट से ही होती है । यह आशावाद मुखपृष्ठ से झलकता है । मल पृष्ठ पर डॉ. सुनील
जाधवजी का साहित्यिक परिचय एवं योगदान को संक्षेप में दिखाया गया है । कहानी
संग्रह गोधड़ी का आकार डायरीनुमा है जिसे आप आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं ,जो सहज है सहज उपयोगी है ।
पन्नों की
क्वालिटी एवं थिकनेस आदर्श माणकों से युक्त है । जिसके कारण छपाई भी स्पष्ट रूप से
अंकित हुई है । जिससे पाठकों को पढ़ने में कोई कठिनाई नहीं जाती है । वह सहज रूप
से पढ़ सकें इसी को ध्यान में रखते हुए अक्षरों का टाइप और फौंट साइज को रखा गया
है । सबसे महत्वपूर्ण है कहानी संग्रह की बाइंडिंग जो बड़ी ही मजबूत पूठ्ठा
बाइंडिंग है । जिससे कहानी संग्रह का कलेवर और भी निखर कर आया है । कहानी संग्रह
में कुल 13 कहानियां है जो कहानीकार की व्यापक दृष्टि , रचना
सृष्टि, कसक, पीड़ा, मान सम्मान ,अपमान ,प्रेम,
वात्सल्य, त्याग, जिज्ञासा
,संघर्ष, प्राकृतिक चेतना ,देश प्रेम, साहस आदि कई गुणों को कहानी के पात्रों
द्वारा पाठकों के मानस पटल पर चिन्हांकित करने में सक्षम रही है । लालित्य ललित जी
द्वारा लिखी गई प्रस्तावना में ' गागर में सागर' भरने का कार्य निपुणता से किया है । कहानी संग्रह का बाज क्या है कथावस्तु
,विषय वस्तु, परिवेश , परिक्षेत्र , व्यापकता आदि बातों को स्पष्ट किया गया
है। गोधड़ी इस कहानी संग्रह में आप हर एक कहानी में जीवन संघर्ष, द्वंद्व एवं मन का संघर्ष देखकर हर योद्धा से अपनत्व की भावना निर्माण
होगी । असीम संघर्ष की परिसीमा को पार करने वाली नायिका जैसे गोधड़ी की नीलू हो,
म कोनी मरेवा की गोदावरी हो , मच तार याडी छु
ये की बूढ़ी अम्मा हो या फिर पापा मुझे कहीं नहीं ले जाते के दादा अमर सिंह हो
सच्चे रूप में यही हीरो है , यह भावना दूर हो जाती है। उम्र
के अंतिम पड़ाव में समस्या अभाव भरे जीवन से दो दो हाथ करना आसान नहीं है । नीलू
गोदा बाई और बूढ़ी अम्मा जो अपने पति को खो चुकी है फिर भी अकेले पूरे परिवार के
लिए संकटों से सामना करती है निरंतर जूझती है। यह जूझना ही कहानी संग्रह की आत्मा
है।
गोधड़ी कहानी में यार्डी नीलू का
संघर्ष है ,
जो पति के देहांत के बाद घर की सारी जिम्मेदारी संभालती है। यहॉ हर
रोज भूख से जंग होती है। फिर जो भी मिले वह अच्छा ही लगता है । " भोजन
स्वादिष्ट नहीं होता बल्कि भूख भोजन को स्वादिष्ट बना देती है । " 1972 के
अकाल में 7 लोगों का परिवार संभालना अत्यंत कठिन था । " डर भी मानो याडी से
डरता था । " यारी का जीवन ही संघर्ष था , पर याडी कभी
झूकी नहीं । परिश्रम और स्वाभिमान उसके गहने थे । याडी के देहांत के बाद कन्या
सरजा बाई और पुत्र तुकाराम दुखी है । पर तुकाराम इस बात से ज्यादा आहत होता है कि,
समाज के ठेकेदार गोदाबाई के साथ उसकी गोधडीयों को भी जलाना चाहते हैं तब इस अन्याय के विरुद्ध तुकाराम के यह
क्रांतिकारी " अम्मा क्या गोधड़ियाॅ अपने साथ ले जाने वाली है क्या ? आखिर तुम लोग इसे जलाने वाले ही तो है। इससे अच्छा है मैं रख लेता हूं ।
मुझे रात में बहुत ठंड लगती है । " यहां परिवार के पास ठंड से बचने के लिए
कुछ नहीं है और समाज के ठेकेदार धर्म और अंधश्रद्धा की आड़ में तुकाराम से ठंड से
बचने का साधन भी छिनना चाहते है , इसकी चिंता है उसे अधिक है
। इस अभाव की स्थति ने ही उसे सामाजिक कुरीतियों के साथ बगावत करने की शक्ति
प्रदान की है । इस स्थिति को अत्यंत
मार्मिक ढंग से लेखक डॉ सुनील जाधव जी ने कहानी में पेश किया गया है ।
' मैं बंजारे का
छोरा ' कहानी में के माध्यम से उच्च विद्या विभूषित समाज आज
के विज्ञान युग में भी छुआछूत को किस प्रकार से मानता है और भेदभाव को बढ़ावा देता
है, इसे स्पष्ट किया है । प्राध्यापक कैलाश को महेश जी के
हाथों किस प्रकार से अपमानित किया गया ,वह भी दो घूंट पानी
के लिए ? आज के विज्ञान युग में भी छुआछूत और भेद भाव की
मानसिकता और विचार धारा रखने वालों पर लेखक ने करारी चोट की है।
' म कोनी मरे वाळ '
कहानी में गोदा बाई द्वारा एक सशक्त मुखिया का किरदार निभाया
है । अपाहिज पोती रूपा को पढ़ा लिखा कर शिक्षक बनाने तक का संघर्ष विवेकशिल पाठकों
को सोचने पर मजबूर कर देता है। हर घड़ी रूपा के पक्ष में खड़े रहना , जीवन संघर्ष , विचारों की विशालता , भविष्य को पहचानने की दृष्टि,एक महिला का दुसरी को
अपने पैरों पर खड़ा करने की जिद, अपाहिजता का रोना रोते ना
बैठ कुछ कर दिखाने का जज़्बा आदि बातों को लेखक सशक्त रूप से पेश किया गया है। इस
माध्यम से महिला सशक्तिकरण एवं महिला संघर्ष को गोदा बाई के द्वारा चित्रित करने
का काम लेखक द्वारा बड़े ही कुशलता से कीया गया है । गोदा बाई ऐसे कई महिलाओं का
प्रतिनिधित्व इस कहानी के माध्यम से करती है, जो संकटों पर
हावी होना जानती है ।
' मच तार याडी छू में ' कहानी के
माध्यम से संपत्ति लोलूपता के कारण सगी बहन अपनी 80 साल की वृध्द बहन के साथ कितना
बुरा व्यवहार करती है और पड़ोसन विमला बूढ़ी अम्मा में खुद की अम्मा देख कर उसकी
सेवा करती है । समाज के इन दो विचारधाराओं को कहानी में भावपूर्ण रूप से चित्रित
किया गया है , जिससे समाज में स्थित दो प्रकार की मानसिकताओं
को लेखक ने प्रतिध्वनित किया गया है। पाठकों की भावनाऐं एवं ह्रदय के तार कहानी के
पात्रों से जोड़ने की असिम शक्ति कहानी के कथानक है ।
' एक नन्हा सा पक्षी ' निसर्ग ,
प्रकृति एवं पर्यावरण की कहानी है । इस कहानी में बाल मानस को समझने
का प्रयास भी किया गया है । प्रकृति के साथ एकरूपता और पशु पक्षियों का महत्व स्पष्ट करने में लेखक सफल हुए है । प्रकृति
केवल मानव के लिए नहीं अपितु इसमें हर सजीव को जीने का उतना ही अधिकार है जितना
मानव का इस प्रकार की उदात्त मानवीयता को अत्यंत भावपूर्ण एवं सहज शैली से स्पष्ट
किया
गया है ।
' मेरे पेट में बच्चा दानी नहीं है ' यह
कहानी एक समझदार एवं सुलझे हुए पति पत्नी के रिश्तो को दिखाती है । ज्योति और
रोहित इन्हें जब समझता है कि ज्योति के पेट में बच्चा दानी नहीं है तब वह अपना
पारिवारिक जीवन किस प्रकार व्यतीत करते हैं ? इसे बड़े ही
गंभीरता से दिखाया गया है । यह कहानी समाज के उन परिवारों का प्रतिनिधित्व करती है
, जिन्हे संतान सुख प्राप्त नहीं । उन्हें अपना जीवन किस
प्रकार समझ बूझ , प्रेम और विश्वास के धागे में बंधकर जीना
चाहिए । इस बात को समझाते हुए पति पत्नी के रिश्तों में आनेवाले उतार चढ़ाव और एक
दूसरे की पपुरकता को लेखक ने सहज सरल शब्दों में कहानी में फिरोया है ।
' जब खोया उसे विदेश में ' शिर्षक सोच
में डालने वाला है । कहानी पासपोर्ट की महत्ता को अंकित करने एवं विदेशों में
यात्रा करने वाले यात्रियों में जागृति निर्माण करने के लिए लिखी गई है । विदेश
यात्रा करने वाले यात्रियों को पासपोर्ट की महत्ता को उचित ढंग से समझाती है।
' मिस्टेक ' युवा मन के उमंगों के
तरंगों की कहानी है । कोमल , माधव एवं विमल की कहानी प्रेम
के त्रिकोण में फस जाती है । कहानी में तीनों पात्रों द्वारा कुछ ना कुछ मिस्टेक
हो जाती है । जिसके कारण कहानी किस प्रकार आगे बढ़ेगी इसका अनुमान पाठक नहीं लगा
सकते । पाठकों की उत्सुकता एवं सस्पेंस को बढ़ाने में लेखक ने अपार सफलता प्राप्त
की है । भाव भावना एवं साजीश में पाठकों को उलझाए रखा है।
' काटा ' यह कहानी समाज की मानसिकता में आए बदलाव को चित्रित करती है । वैवाहिक
जीवन में विश्वास सहनशीलता एवं संवेदनाओं की कमी के कारण आज कई संसार टूट चुके हैं
अथवा टूटने के कगार पर है । कहानी के पात्र नीलेश और नीलू के द्वारा कुटुंब
व्यवस्था एवं सामाजिक सोच को कहानी में सशक्त रूप से लेखक ने चित्रित किया गया है
। कांटे दो प्रकार के होते हैं एक जो पैर में छुपता है और दूसरा जो ह्रदय को आहत
करता है । कहानी में नीलेश की तीन शादियां , उसका अनैतिक
व्यवहार , इसके पीछे समाज की सोच और नीलेश को चुभने वाले
कांटे इसे शब्दचित्रों द्वारा मार्मिक ढंग से लिखा गया है । दूसरी ओर नीलू को
चुभने वाले कांटे अलग है । कहानी में नीलू के पैर में कांटा चुभता है तब नीलेश
मंदिर का सारा परिसर साफ एवं स्वच्छ कर देता है । पर क्या निलेश समाज में फैली
गंदगी को साफ कर सकता है ? या फिर खुद के मन को मैला होने से
बचा सकता है ? इस प्रकार के कई सवाल उपस्थित करने वाली यह
कहानी है । महिला की सहनशीलता को भी इस कहानी में उचित न्याय दिया गया है ।
' घोंसला - प्रायश्चित ' यह कहानी
पूर्ण रूप से प्रकृति एवं संवेदनशीलता को समर्पित है । एक छोटी सी चिड़िया अपना
आशियाना कितनी मेहनत से बनाती है ? घोंसला बनाने के लिए उसे
क्या-क्या सहन करना पड़ता है ? फिर भी अथक परिश्रम से वह
अपना घोंसला किन संकटों का सामना करके बनाती है ? इसे अत्यंत
सहज सरल भाव एवं उत्सुकता को बढ़ाने हुए कहानी को उंचाई प्रदान की है। चिड़िया एक
प्रतिनिधित्व है जिसे देखकर मानव भी बहुत कुछ सीख सकता है ।
' पापा मुझे कहीं नहीं ले जाते ' करुण
रस का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करने वाली कहानी है । इसी के साथ आज के सभी अभिभावकों
को यह कहानी सोचने पर मजबूर कर देगी की,
शुक्र है उनकी हालत अनुज के पिता सोहन जैसी नहीं है । बच्चों
को वक्त देना चाहिए ,घर में बड़े बुजुर्गों का होना कितना
आवश्यक है? यह बात दादाजी अमर सिंह को देखने के बाद समझ में
आती है । यह कहानी परिवार की बुनियादी समस्या को उजागर करती है और वर्तमान स्थिति
में पुत्र एवं पिता के संबंधों को भी उचित न्याय देने की सोच को कायम करती है ।
' कैची ' यह कहानी राष्ट्रप्रेम एवं देशभक्ति से ओतप्रोत है । वीर रस की अधिकता
कहानी का आधार तत्व है । गोविंद जो एक सैनिक था, आज वह जीवन
निर्वाह के लिए नाई बना है । उसकी कैची इस प्रकार से बालों को काटती है जैसे कोई
सैनिक दुश्मनों का सिर धड़ से अलग करता हो । आदर्श सैनिक ,आदर्श
पिता ,आदर्श पति और असीम देश प्रेम यह गोविंद का व्यक्तित्व
है । " जिंदगी भी एक लड़ाई है कई दुख रूपी दुश्मन हमारे जिंदगी में आते हैं
हमें उनका सामना करना ही होता है " यह वाक्य लड़ाई और जिंदगी में कोई फर्क
नहीं है अधोरेखीत करती है । जिंदगी और जंग को
अत्यंत रोचक ढंग से कहानी में स्पष्ट किया गया है । इसी के साथ गोविंद की
पत्नी और गुड़िया का त्याग इस कहानी की आत्मा है ।
' प्यार का इंतजार ' कहानी प्यार के
सच्चे अर्थ को परिभाषित करने वाली कहानी है । प्यार का मतलब केवल प्राप्त करना
नहीं अपितु त्याग है । आप जिससे प्यार करते हैं उसका भला सोचना प्यार है । उसके
लिए आपको कितना भी बड़ा त्याग क्यों न करना पड़े । खुद को दुखों की खाई में झोंककर
भी अपने प्रिय की खुशी जो देखता है असल में वही सच्चा प्यार है । इसी तथ्य को
अत्यंत रोमांटिक ढंग से दिल की भावनाओं को किताब के पन्ने पलटते हुए पढ़ते पढते
प्रेम को उच्च कोटि में पहुंचने वाली कहानी है , ' प्यार का
इंतजार ' जिसे गोविंद और मधुबाला की प्रेम कहानी के रूप में
चित्रित किया गया है। सच्चे प्यार को
इंतजार ही करना पड़ता है । और कभी-कभी है
इंतजार सांसो से अधिक हो जाता है । ऐसा क्यों होता है ? ऐसे
अनेक प्रश्न कहानी से निर्मित होते हैं ।
डॉ. सुनील गुलाब सिंह जाधव द्वारा लिखित
कहानी संग्रह जिसमें 13 कहानियां है।
इन सभी कहानियों से डॉ. सुनील जाधव का
व्यक्तित्व तीव्रता से उभर आता है । बंजारा समाज की आंचलिकता , भाषा
,समाज रचना, विवाह पद्धति , परिवारीक समस्या , निरक्षरता , अंधश्रद्धा ,सामाजिक दोष, आर्थिक
दयनीय स्थिति आदि बातों को स्पष्टता से उजागर करने वाले एक समाजशील लेखक के रूप में डॉ.सुनील जाधव को देखा जा सकता
है । प्रकृति से जुड़ाव, पशु पक्षी का महत्व भी उनके
कहानियों से झलकता है । सामाजिक दायित्व, राष्ट्रप्रेम,
परिवार आदि को कहानियों में अधिक महत्व दिया गया है । प्रेम फिर वह
मां का बेटा से हो ,दादा दादी का अपने पोता पोती से हो ,
पशु पक्षियों से हो या फिर युवा दिलों का प्यार हो हर प्रकार का
प्यार पाठकों को गोधड़ी में मिलेगा और पाठक भी इस कहानी संग्रह को उतना ही प्यार
करेंगे इसमें कोई संदेह नहीं है ।
लेखक - डॉ. सुनील
गुलाब सिंह जाधव
प्रकाशक - एपीएन
पब्लिकेशन दिल्ली
प्रथम संस्करण -
२०१९
मुल्य - २५०
ISBN NO : 978-93-85296-83-3
पुस्तक परिक्षण 😘 धिरज बालासाहेब
पावडे*
मोबाईल नंबर : 9822630506

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