
वे साहित्य की लगभग सभी
विधाओं पर लिखने का महत्व पूर्ण कार्य कर रहे है | कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास,
निबंध, रेखाचित्र, अनुवाद आदि | अगन पथ , [लघु उपन्यास ], संप्राप्तकथा , ओस के
बूंद [लघु कथा ] माछलीघरमा मानवी [ कहानी संग्रह ], आगिया [ रेखाचित्र संग्रह ],
दस्तखत [ सुक्तियाँ ], मर्मवेध , झरोखा [ निबंध संग्रह ] आदि उनकी प्रकाशित रचनाएँ
हैं |
आप अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ई
पत्रिका ‘’नव्या’’ तथा साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादन कर रहे हैं | नव्या
अहिन्दी भाषी क्षेत्र की साहित्यक पहचान बन गई है | आप ने नव्या के माध्यम से न
केवल अहिन्दी भाषी क्षेत्र के रचनाकारों को मंच दिया है अपितु सम्पूर्ण हिंदी
विश्व के लिए अपने मुक्त किन्तु अनुशासन एवं स्तरीय द्वार खोल दिये है | आप ने नव
साहित्यकारों को मात्र प्रोत्साहित ही नहीं किया बल्कि उन्हें अपनी बात रखने का
सशक्त मंच प्रदान किया है | अन्य पत्रिकायें नव साहित्यकारों को मंच तो प्रदान
करती तो है पर उन्हें बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ती है | क्योंकि पहले से ही वहाँ
वरिष्ठ साहित्यकारों ने आपना डेरा जमालिया होता है | इससे नव साहित्यकार
हतोत्साहित हो जाता है | वह पनप ने से पहले ही मुर्झा जाता है | वह नया है, उसमे
अनुभव की कमी है | शायद इसी कारण उनकी रचनाओं में कई कमिया हो सकती है | पर जबतक
उन्हें मौका नहीं मिलेगा तबतक वे अपनी गलतियों को सुधार कर अपने–आप को कैसे उपर
उठा पायेंगें | पंकज त्रिवेदी जी ने नव साहित्यकारों को तराशने का काम किया हैं |
वे हर अनघड मूर्ति में से एक सुंदर मूर्ति की स्थापना कर रहे है | विश्व साहित्य
का हिंदी पाठक इन मूर्तियों को देख दातों तले उँगलियाँ चबाने का काम कर रहा है |
कई ऐसी त्वचा है जो ओरों की उज्वल त्वचा को देख शायद सम्पादक की इस अग्नि से झुलस
भी रहे है |
‘’नव्या ‘’ जैसे –जैसे आगे बढ़
रहा है | वह प्रतेक पथ पर हिंदी की उज्वल हरयाली फैला रहा है | इस सफर में पंकज जी
को कई तुफानो का सामना करना पढ़ा | पर उन्होंने इससे हार नहीं मानी | बल्कि इससे वे
और भी मजबूत होते गये | उन्होंने दिखा दिया की नव्या अब कोई दूध पीता बालक नहीं
रहा | जो किसी भी संकंटो से घबरा जाये | नव्या के सफर में बीच ही में किसी ने अपना
अधिकार जताया था | इस समाचार से हिंदी पाठकों में खलबली मच गई थी | इसके बाद नव्या
नये रूप में ढल गई | इसका परिणाम यह हुआ की ‘’नव्या ‘’ और भी प्रसिद्ध हो गई |
‘’नव्या ‘’ की दिन ब दिन ख्याति बढ़ने से अब वह अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका बन गई है |
नव्या के पाठक और रचनाकार केवल भारत ही नही रहा अपितु विदेशों में भी बढ़ रहे है |
वह दिन दूर नहीं होगा जब नव्या विश्व की सर्व श्रेष्ठ पत्रिका बन जायेगी |
अहिन्दी भाषी क्षेत्र के
हिंदी रचनाकारों को हिंदी भाषी क्षेत्र में अपनी पहचान बना पाना इतना आसान नही
होता | उन्हें इसके लिए बहुत संघर्ष करना पढता है | या उन्हें स्थान ही नहीं मिलता
| या फिर उन्हें तुच्छता की नजरों से देखा जाता है | मानो वे इंसान ही नहीं बल्कि
कुछ और ही हो |पर पंकज जी ने अहिन्दी भाषी हिंदी रचनाकारों को एक सम्मान का दर्जा
दिलाया है | अब हमे भी ‘’नव्या’’ पर गर्व है |पंकज जी केवल लेखन या सम्पादन तक ही
सीमित नहीं रहे है बल्कि उन्होंने नव्या पब्लिकेशन के अंतर्गत कई किताबे छापी है |
जो अहिन्दी क्षेत्र में हिंदी प्रचार-प्रसार का बहुत बड़ा माध्यम बन कर उभर रहा है
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लेखक
डॉ.सुनील जाधव,नांदेड
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