2.पुस्तक परीक्षण: "बन्द शहर बन्द दरवाजे"
प्रकाशक: अद्वैत प्रकाशन, दिल्ली
प्रथम संस्करण: 2025
ISBN: 978-93-95226-51-6
डॉ. सुनील गुलाबसिंग जाधव महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रतिष्ठित हिंदी लेखक, कवि, नाटककार एवं शोधकर्ता हैं। उनकी साहित्यिक यात्रा में कविता, कहानी, एकांकी, नाटक, व्यंग्य, अनुवाद, और शोध जैसी विविध विधाओं में उल्लेखनीय योगदान शामिल है। उन्हें अंतरराष्ट्रीय सृजन श्री पुरस्कार, भाषा रत्न, मुंशी प्रेमचंद रजत सम्मान, और विश्व हिंदी सचिवालय पुरस्कार जैसे सम्मान प्राप्त हुए हैं। डॉ. जाधव ने हिंदी साहित्य को समकालीन सामाजिक-राजनीतिक विमर्श से जोड़कर एक नई दिशा दी है। वर्तमान में वे यशवंत कॉलेज, नांदेड़ में हिंदी के प्राध्यापक और "शोध-ऋतु" शोध पत्रिका के संपादक हैं। उनकी रचनाएँ मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक यथार्थ, और सांस्कृतिक विरासत को गहराई से उकेरती हैं।
नाटक का संक्षिप्त परिचय-
"बन्द शहर बन्द दरवाजे" कोरोना महामारी और लॉकडाउन की पृष्ठभूमि पर लिखा गया एक मार्मिक नाटक है। यह नाटक ग्रामीण जीवन, शहरी व्यवस्था, और महामारी के बीच फंसे आम व्यक्ति के संघर्ष को दर्शाता है। नाटक के केंद्र में विठ्ठल और बापुराव नामक दो किसान भाइयों की कहानी है, जो लॉकडाउन के दौरान बीमार बापुराव को अस्पताल ले जाने के लिए बैलगाड़ी से शहर की यात्रा करते हैं। यह यात्रा उनके सामाजिक, आर्थिक, और मानसिक संकटों का प्रतीक बन जाती है।
नाटक की प्रमुख विशेषताएँ -
1.यथार्थपरक कथानक
नाटक कोरोना काल की वास्तविकताओं को बिना लाग-लपेट के प्रस्तुत करता है।
उदाहरणार्थ:
विठ्ठल: "दादा, अस्पताल तो चालू है, पर वहाँ जाने के लिए बस, निजी वाहन, ट्रेन सब बंद हैं। शहर यहाँ से अस्सी किलोमीटर दूर है... हम कैसे जाएँगे?"
यह संवाद ग्रामीणों की विवशता और सरकारी व्यवस्था की खामियों को उजागर करता है।
2.पात्रों का मनोवैज्ञानिक चित्रण
- विठ्ठल: संघर्षशील, दृढ़निश्चयी, और भाई के प्रति समर्पित।
- बापुराव: बीमारी से जूझता हुआ, मृत्यु के भय से ग्रस्त।
- रुक्मिणी: साहसी, स्वाबलंबी, और पारिवारिक मूल्यों से ओत-प्रोत।
रुक्मिणी: "धनीराम! तूने न जाने कितनी स्त्रियों का शोषण किया होगा... आज मैं तुझे सबक सिखाऊँगी!"
यह संवाद नारी सशक्तिकरण और सामाजिक बुराइयों के प्रतिरोध को दर्शाता है।
3.सामाजिक-राजनीतिक व्यंग्य-
नाटक में सरपंच धनीराम जैसे पात्र के माध्यम से भ्रष्ट राजनीति और स्त्री शोषण पर करारा प्रहार किया गया है:
धनीराम: "रुक्मिणी, मैं तुझसे प्यार करता हूँ... तू मेरी शर्त मान ले, तो तेरे पति को बचाने में मदद करूँगा।"
यहाँ सत्ता का दुरुपयोग और नैतिक पतन साफ झलकता है।
4.भाषा और शैली-
नाटक की भाषा सरल, मुहावरेदार, और ग्रामीण बोलियों से समृद्ध है। संवादों में हास्य और करुणा का सटीक संतुलन है:
बापुराव: "छोटू, तालाबंदी! यह क्या है? अब तक नसबंदी, नशाबंदी, नोटबंदी सुनी थी..."
यह संवाद लॉकडाउन के प्रति ग्रामीणों की अनभिज्ञता को दिखाता है।
5. प्रतीकात्मकता
- बैलगाड़ी: ग्रामीण जीवन की मजबूती और पारंपरिक संसाधनों पर निर्भरता।
- आक्सीजन की कमी: व्यवस्था का अमानवीय चेहरा और स्वास्थ्य सेवाओं की विफलता।
नाटक के प्रमुख उद्धरण एवं विश्लेषण
1. मानवीय संबंधों की मार्मिकता:
विठ्ठल: "दादा, तूने मुझे बचपन में सम्हाला, अब मैं तुम्हें सम्हालूँगा।"
यह संवाद भाईचारे और पारिवारिक बलिदान की भावना को उजागर करता है।
2. सामाजिक असमानता:
डॉक्टर: "आक्सीजन सिलेंडर खत्म हो गए हैं... गरीबों के लिए कोई जगह नहीं।"
यह पंक्ति स्वास्थ्य व्यवस्था में वर्ग भेद को चित्रित करती है।
3.नारी सशक्तिकरण:
रुक्मिणी: "मैं शेरनी हूँ... तूने मेरी तरह की औरतों से पाला पड़ा है!"
स्त्री की आत्मरक्षा और स्वाभिमान की प्रतीक।
नाटक की सीमाएँ
- कुछ दृश्यों में अतिनाटकीयता (मेलोड्रामा) का आभास होता है, जैसे यमराज का प्रकट होना।
- अंतिम अंक में आकस्मिक समाधान (विट्ठल का जीवित बच जाना) यथार्थ से थोड़ा दूर लगता है।
सामाजिक संदेश और प्रासंगिकता
- महामारी और मानवता: कोरोना काल में मनुष्यता के संकट को दर्शाता है।
- ग्रामीण-शहरी विभाजन: स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच में असमानता।
- स्त्री विमर्श: रुक्मिणी का चरित्र पारंपरिक भूमिकाओं को चुनौती देता है।
निष्कर्ष -
"बन्द शहर बन्द दरवाजे" न केवल एक नाटक है, बल्कि कोरोना काल का एक दस्तावेज़ है जो मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक विसंगतियों, और संघर्ष की गाथा कहता है। डॉ. जाधव ने ग्रामीण जीवन की सच्चाइयों को इतनी प्रामाणिकता से उकेरा है कि पाठक/दर्शक स्वयं को कथानक का हिस्सा महसूस करते हैं। यह नाटक हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर है और समकालीन सामाजिक-राजनीतिक विमर्श के लिए अनिवार्य पठन सामग्री।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें