नांदेड, 25
जुलाई, 2025 – श्री शारदा भवन एज्युकेशन सोसाइटी संचालित
यशवंत महाविद्यालय,
नांदेड़ के हिंदी विभाग ने बी.ए., बी.एससी.,
और बी.कॉम. प्रथम वर्ष में नवप्रवेशित विद्यार्थियों के लिए सत्रारंभ
कार्यक्रम (इंडक्शन प्रोग्राम) का सफल आयोजन किया, जिसमें
हिंदी भाषा के वर्तमान और भविष्य पर गहन चिंतन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य
वक्ता के रूप में पूर्वोत्तर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, शिलांग,
मेघालय के हिंदी विभाग से
डॉ. साईनाथ चापळे को आमंत्रित किया गया था।
कार्यक्रम
का गरिमामय संचालन डॉ. सुनील जाधव ने किया। मंच पर कार्यक्रम की अध्यक्षता
महाविद्यालय की विद्वान उप-प्राचार्य प्रो. डॉ. कविता सोनकांबळे ने की, जिनकी उपस्थिति ने
कार्यक्रम को और भी गौरवपूर्ण बना दिया। उनके साथ हिंदी विभागाध्यक्ष संदीप
पाईकराव, जिन्होंने कार्यक्रम के सफल आयोजन में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई, पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. वडजे, डॉ. साईनाथ शाहू और डॉ. सुनील जाधव भी उपस्थित थे, जिन्होंने
कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना योगदान दिया।
कार्यक्रम
की शुरुआत में,
हिंदी विभागाध्यक्ष संदीप पाईकराव ने सत्रारंभ कार्यक्रम
(इंडक्शन प्रोग्राम) के महत्व और उद्देश्य को विस्तार से समझाते हुए कार्यक्रम
की विस्तृत भूमिका प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि किस प्रकार सत्रारंभ
कार्यक्रम (इंडक्शन प्रोग्राम) अकादमिक और छात्रों के लिए आवश्यक है। मुख्य
अतिथि डॉ. साईनाथ चापळे का परिचय डॉ. सुनील जाधव ने करवाया, जिसमें
उन्होंने डॉ.चापळे के अकादमिक
योगदान और विशेषज्ञता पर प्रकाश डाला।
अपने
मुख्य वक्तव्य में डॉ. साईनाथ चापळे ने छात्रों को हिंदी भाषा के विभिन्न आयामों
से परिचित कराया। उन्होंने हिंदी में रोजगार के अवसरों पर विस्तार से चर्चा की, यह
बताते हुए कि कैसे हिंदी अब केवल साहित्य की भाषा न होकर विभिन्न व्यवसायिक
क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। उन्होंने हिंदी की वैश्विक
स्थिति का विश्लेषण किया और बताया कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का प्रभाव
बढ़ रहा है। डॉ. चापळे ने वर्तमान स्थिति में हिंदी के समक्ष चुनौतियों और
संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला। विशेष रूप से, उन्होंने तकनीकी
हिंदी के महत्व पर जोर दिया, यह बताते हुए कि सूचना
प्रौद्योगिकी के युग में हिंदी का तकनीकी अनुप्रयोग कितना आवश्यक है। उन्होंने
भारत सरकार के तकनीकी हिंदी में योगदान की भी सराहना की, जिसमें
राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रचार-प्रसार और तकनीकी विकास के लिए किए जा रहे
प्रयासों का उल्लेख किया गया। उनका वक्तव्य अत्यंत ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायी रहा,
जिसने श्रोताओं को हिंदी के बहुआयामी स्वरूप से अवगत कराया।
अंत में डॉ. साईनाथ शाहू ने प्रमुख वक्ता, प्राध्यापक
और विद्यार्थियों का हृदय से आभार व्यक्त किया, जिससे
कार्यक्रम का सफलतापूर्वक समापन हुआ।
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